Book Title: Upnishado ka Jain Tattvagyan par Prabhav Author(s): Anita Bothra Publisher: Anita Bothra View full book textPage 9
________________ है। सृष्टिकर्ता कोई ब्रह्म, प्रजापति, ईश्वर आदि नहीं है । जीव और पुद्गल ये दोनों तत्त्व अनादिकाल से एक-दूसरे के सम्पर्क में है । अगर पूरे विश्व का विचार करे तो वह षड्द्रव्यों से युक्त है । उसमें से पाँच अस्तिकाय द्रव्य है । धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, जीवास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय और काल-इन षड्द्रव्यों की अवस्थिति लोक में है ।४८ इनके संयोग-वियोग से और परिणमन से विश्व में गतिमानता और नियन्त्रण दोनों सदैव उपस्थित हैं । काल के ओघ में सृष्टि की उत्पत्ति एवं विनाश को नकारनेवाला जैन तत्त्वज्ञान, सृष्ट्युत्पत्तिविषयक मिथक कथाओं से भरे हुए उपनिषदों से प्रभावित होना सर्वस्वी असम्भवनीय ही है । सृष्टि की उत्पत्ति के बारे में जैनों की केवल अलग अवधारणा ही नहीं किन्तु उपनिषदों में निर्दिष्ट मत-मतान्तरों पर प्रतिक्रियात्मक टीका भी पायी जाती है। स्वसमय-परसमय पर आधारित सूत्रकृतांग में कहा है कि - एवमन्नं तु अन्नाणं, इहमेगेसिमाहियं । देवउत्ते अयं लोए, बंभउत्ते त्ति आवरे ।। ईसरेण कडे लोए, पहाणाइ तहावरे । जीवाजीवसमाउत्ते, सुहदुक्खसमन्निए ।। सयंभुणा कडे लोए, इति वुत्तं महेसिणा । मारेण संथुया माया, तेण लोए असासए ।। माहणा समणा एगे, आह अंडकडे जगे । असो तत्तमकासी य, अयाणंता मुसं वदे ।। सएहिं परियाएहिं, लोयं बूया कडे त्ति य । तत्तं ते ण विजाणंति, ण विणासी कयाइ वि ।।४९ भावार्थ यह है कि समकालीन विचारवन्तों की सृष्टिनिर्मित कल्पनाओं में, ‘सृष्टि किसी न किसी द्वारा निर्मित है', यह तथ्य अधोरेखित होता है, जो जैन तत्त्वज्ञान को मान्य नहीं है । जगत्कर्ता के रूप में देव (देवता), ब्रह्मा (प्रजापति), ईश्वर, प्रधान, स्वयम्भु, मार आदि को कथन करना सूत्रकृतांग के अनुसार मृषावाद का द्योतक है । किसी अण्डे से निर्मित जगत् को भी मृषाभाषण कहा है । इस विवेचन की अन्तिम गाथा में कहा है कि यद्यपि लोक अविनाशी है तथापि उसकी उत्पत्ति नहीं है, विनाश नहीं है, न कोई उसका कर्ता है न संहर्ता है । अर्थात् लोक अनादिअनन्त है।Page Navigation
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