Book Title: Upkesh Vansh
Author(s): Unknown
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushapmala

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Page 5
________________ या-श्रीसवालों का इतिहास । ( तर्ज ढ़ लिया जग सारा जग सारा० । ) उपकेश' में पगधारा - पगधारा सूरीश्वर शिष्य साथ ले || टेर || बाहिर नगर के ध्यान लगाया। मास खामण तप है गुरु द्वाया । करते थे श्रात्म सुधारा-सुधारा ॥ सूरी० ॥१॥ नगर में शिष्य गोचरी जावे । शुद्ध श्राहार निज योग न पावे । घूम फिरा पुर सारा-पुर सारा ॥ सूरी० ॥२॥ मिथ्या दृष्टि लोग हैं वहाँ के । शिष्य कहे गुरु चलो यहाँ से । मिलत न योग्य आहारा - श्राहारा ॥ सूरी० ॥३॥ मास खामण तप पूरा करके । चलन लगे गुरु 'धीरज' धरके । देवी ने श्राय पुकारा- पुकारा ॥ सूरी० ॥४॥ दोहा - चमत्कार दिखलाइये । सुधरे यहाँ के लोग । गुरू कहे करतब नहीं । मुनि लोगों के योग ॥१॥ ( तर्ज़ वनजारा की ) देवी कह बात बुझाई । धर ध्यान सुनो मुनिराई ॥ टेर || जहाँ लाभ धर्म का होवे । उपयोग देख कर जोवे जी ॥ ॥ यह चलती रूढ़ी आई । धर ध्यान सुनो० ॥ # तब गुरु ने ध्यान लगाया। सब कथन सच्च ही पाया जी ॥ रख दिया नाम सच्चाई | धर ध्यान : सुनो ॥ २॥ १ उपदेशपुर २ खप्रभसूरी ३ पांच सो मुनियों के साथ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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