Book Title: Upkesh Vansh
Author(s): Unknown
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushapmala

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Page 3
________________ या-पोसवालों का इतिहास। (तर्ज-दिल जान से फिदा हूँ।) मन चाहा राज पाया। इस भाँति अश्व चढ़के ॥टेर। देवी चामुण्डा' ने आकर । उसको कहा बुझाकर । निकलूं मैं पहाड़ अन्दर । उस रोज़ शीघ्र तड़के मन०१ मन्दिर मेरा बनाना। अहीर को जताना । भय से न डिगमिगाना । जब गायें वहाँ से भिड़कामन०२ इतना है काम तेरा। नगरी बसाना मेरा । नगरी में हो उजेरा । औरों से चढ़ के बढ़ के॥मन०३ ऊँपलदे शीघ्र आया। श्रा ग्वाल को जताया । मत शोर नेक करना । जब पहाड़ पाके फड़के मन०४ दोहा-उसने हाँमी तो भरी, अन्त गया वह भूल । ___पहाड़ फटा वह डर गया, काम हुआ प्रतिकूल ॥१॥ (तज-अपने मौला की मैं जोगन बनूंगी।) हाँक मची है जब हाँक मची है, देवी निकलते हाँक मची है।टेर। श्राधी निकल कर देवी तो रह गई नगरी सु उपकेश पट्टन बसी है हाँ०१॥ कँपलदेव हुआ राजा वहाँ का ऊहड़ मंत्रि की प्रीति बनी हैहाँ०२॥ १ चामुण्डा का ऐसा अधिकार जैन पहावलियों में नहीं है पर कितनेक वही भाटों की वंशावलियों में मिलता है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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