Book Title: Upkesh Vansh
Author(s): Unknown
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushapmala

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Page 8
________________ उपकेश वंश (न-चारी जाऊँरे सांवरिया तो पै वारणा रे) लेवो धार सदा उपकार के हिंसा टारना रे ॥ टेर ॥ परम धर्म स्वीकार करो अब, मिथ्या भाषण दूर करो सब । त्याग चोरी व्यभिचार । लोभ को टालना रे ॥१॥ राजा मंत्री सब मिल जनता । उपदेशगुरू का सिर पर धरता। बासक्षेप शिर डार । जैन पथ चालना रे ॥२॥ उपकेश पट्टन से कहलाये । उएश वंश सब के मन भाये ॥ गौत्र मुख्य अढार' साख बहु जानना रे ॥३॥ हर्ष वधाई हो गई घर घर । किरपा हुई गुरु की हम पर ।। सत बतलाया मार्ग, उसी पै चालना रे॥४॥ संवत् विक्रम चारसौ पहले, श्रोशियों वासी क्षत्रिय सघले ॥ फिर श्रोसवालर कहलाये, जैनी जानना रे ॥५॥ दोहा-पाव पाट छट्टे हुए, रत्नप्रभु सूरि राय । (७०) सत्तर संवत् वीर का, निर्णय समय सुपाय ॥१॥ (१)१-तातेहख २-बाफणा ३-करणावट ४-बलाहा (शंका) ५-मोरख (पुष्करणा) ६-कुलहट ७-विरहट (भटेवरा) ८-श्रीश्रीमान -श्रष्ठि (वैद्यमुत्ता) १०-संचेती १:-अदित्य नाग (चोरहिया) १२-भूरि (भूरंट) १३-भद्र (समदड़िया) १४चिंचट (देशरहा) १५-कुम्भट १६--डिडू (कोचर मुत्ता) १७-कनौजिया १८-लघु श्रेप्ठि। इनकी ४६८ जातियों का तो पता मिल चुका है ' (२) यह नाम विक्रम की ग्यारवीं शताब्दि में हुमा है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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