Book Title: Upkesh Vansh
Author(s): Unknown
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushapmala
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ $ श्री रतप्रभाकर ज्ञान पुष्पमाला पुष्प नं० ३४ । * श्रीरत्नप्रभ सूरिपादपद्मेभ्योनमः उपकेश वंश । (ओसवाल जाति का संक्षिप्त पद्यमय इतिहास) दोहा-वीर ! वीर !! महावीर को !!! करत नमन शतवार । सूरीश्वर गुरु रत्न ने किया बड़ा उपकार ॥ १ ॥ ऐतिहासिक नगरी' जहाँ, उपजे हैं श्रोसवाल । सब लोगों के ज्ञान हित, कहदूँ थोड़ा हाल ॥ २ ॥ (तर्ज़ - कव्वाली) कथन इसका सुनो अब सब । श्रोशियों क्यों बसाई है || || नगर श्रीमाल का राजा । वंश परमार में जो था । हुई पुत्रों से इक कारण। किसी दिन को रुखाई है ॥ क०१ ॥ पुत्र इक तातको तजके । इकट्ठा करके निज धन को । चला फिर अन्य स्थानों को। वसन की धुन समाई है | |क०२|| १ उपकेशपुर ( प्रोशियों ) २ उत्पलदेव कुँवर । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपकेश वंश सुना एक नम्र का राजा' । मिले है भेट को लेकर । बनाने काम खुद अपना । यही युक्ती चलाई हैं |क०३॥ ख़रीदे श्रश्व जो पचपन्न | रुपैये लक्ष दे दे कर । नृपति को भेट करने की । उपलदे ने विचारी है ॥ क०४ ॥ दोहा - नित प्रति घोटक भेट दे, मिलना कभी न होय । पचपन दिन यों ही रहा, पचपन घोड़े खोय ॥ (तज - ना बेड़ो गाली दूँगा रे । ) अब श्रवसर ऐसा श्राया रे । तब भेंट हुई तत्काल || ढेर || राजा ने करी सवारी । घोड़ों की पंक्ति शृंगारी । खुश होगया शीघ्र निहारी रे । फिर पूछा यही सवाल ॥ श्र० १ ॥ ये घोड़े कहाँ से आये । जो सबको बहुत सुहाये । मंत्रि मन में पछताया रे । पर बोल दिया सब हाल ॥ श्र० २ ॥ है एक विदेशी श्राया । वह घोड़े इतने लाया । fra भेंट एक है या रे । सबकी है सुन्दर चाल ॥ श्र०३ || राजा ने उसे बुलाया । श्रादर से पास बिठाया । वरदान दिया मन भाया रे । तुम माँग लेहु इस काल ॥ श्र०४ || दोहा - घोड़े पैं मैं बैठ कर, जाऊँ जितना आज | लीद जहाँ वह कर देवे, उतना पाऊँ राज ॥ १ ॥ १ टेलीपुर (दिल्ली) २ श्रीसाघुराज ३ किसी किसी पट्टावलियों में अश्व १८० भी लिखा मिलता है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ या-पोसवालों का इतिहास। (तर्ज-दिल जान से फिदा हूँ।) मन चाहा राज पाया। इस भाँति अश्व चढ़के ॥टेर। देवी चामुण्डा' ने आकर । उसको कहा बुझाकर । निकलूं मैं पहाड़ अन्दर । उस रोज़ शीघ्र तड़के मन०१ मन्दिर मेरा बनाना। अहीर को जताना । भय से न डिगमिगाना । जब गायें वहाँ से भिड़कामन०२ इतना है काम तेरा। नगरी बसाना मेरा । नगरी में हो उजेरा । औरों से चढ़ के बढ़ के॥मन०३ ऊँपलदे शीघ्र आया। श्रा ग्वाल को जताया । मत शोर नेक करना । जब पहाड़ पाके फड़के मन०४ दोहा-उसने हाँमी तो भरी, अन्त गया वह भूल । ___पहाड़ फटा वह डर गया, काम हुआ प्रतिकूल ॥१॥ (तज-अपने मौला की मैं जोगन बनूंगी।) हाँक मची है जब हाँक मची है, देवी निकलते हाँक मची है।टेर। श्राधी निकल कर देवी तो रह गई नगरी सु उपकेश पट्टन बसी है हाँ०१॥ कँपलदेव हुआ राजा वहाँ का ऊहड़ मंत्रि की प्रीति बनी हैहाँ०२॥ १ चामुण्डा का ऐसा अधिकार जैन पहावलियों में नहीं है पर कितनेक वही भाटों की वंशावलियों में मिलता है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सहस्र अष्टादश निज कुटुम्बी और भी परजा हुई घनी है ॥ हाँ०३ || तीन लक्ष चौरासी' हज़ार सब उपकेश वंश क्षत्रिय बस्ती शौर्य सनी है ॥ हाँ०४|| दोहा - शोभा से संयुक्त वह, नगरी बनी विशाल । धन धान्य व्यापार से, सब जन थे खुशहाल ॥ १ ॥ ( तर्ज - मोरा दे मैया प्यारा लगे तोरा जैया ) अचल गढ़ ऊपर रत्न प्रभु थे पधारे। अचल० ॥ टेर ॥ चौदह पूर्व के धारी सूरीश्वर । श्रुत केवली अनगार । लब्धि संपन्न श्रागम विहारी । गुण से भरे भंडार जी || श्र० २ ॥ विहार करते आप पधारे । शिष्य पाँच सौ साथ । मास खमण से करे पारणा | चमत्कार था हाथ जी ॥ श्र०३ ॥ अचलगढ़ की नामी देवी । चक्रेश्वरी था नाम । कठिन तपस्या देख गुरू की। करे भक्ति गुण गान जी ॥ श्र० ४ || गुर्जर प्रान्त विचरने कारण | गुरु ने किया विचार 1 मरुभूमि में जाने से हो। देवी कह उपकार जी ॥ श्र०५ ॥ दोहा - उपयोग दे गुरु लख लिया, जान लिया सब सार । मारवाड़ में दया धर्म का, होवेगा विस्तार ॥१॥ १ पांच लक्ष घरोंमें, पत्रिय वर्ण के ३८४००० घर माने जाते थे । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ या-श्रीसवालों का इतिहास । ( तर्ज ढ़ लिया जग सारा जग सारा० । ) उपकेश' में पगधारा - पगधारा सूरीश्वर शिष्य साथ ले || टेर || बाहिर नगर के ध्यान लगाया। मास खामण तप है गुरु द्वाया । करते थे श्रात्म सुधारा-सुधारा ॥ सूरी० ॥१॥ नगर में शिष्य गोचरी जावे । शुद्ध श्राहार निज योग न पावे । घूम फिरा पुर सारा-पुर सारा ॥ सूरी० ॥२॥ मिथ्या दृष्टि लोग हैं वहाँ के । शिष्य कहे गुरु चलो यहाँ से । मिलत न योग्य आहारा - श्राहारा ॥ सूरी० ॥३॥ मास खामण तप पूरा करके । चलन लगे गुरु 'धीरज' धरके । देवी ने श्राय पुकारा- पुकारा ॥ सूरी० ॥४॥ दोहा - चमत्कार दिखलाइये । सुधरे यहाँ के लोग । गुरू कहे करतब नहीं । मुनि लोगों के योग ॥१॥ ( तर्ज़ वनजारा की ) देवी कह बात बुझाई । धर ध्यान सुनो मुनिराई ॥ टेर || जहाँ लाभ धर्म का होवे । उपयोग देख कर जोवे जी ॥ ॥ यह चलती रूढ़ी आई । धर ध्यान सुनो० ॥ # तब गुरु ने ध्यान लगाया। सब कथन सच्च ही पाया जी ॥ रख दिया नाम सच्चाई | धर ध्यान : सुनो ॥ २॥ १ उपदेशपुर २ खप्रभसूरी ३ पांच सो मुनियों के साथ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपकेश वंश राजा का इधर जवाई । सह पनि महल में जाई जी॥ सोता मन हर्ष मनाई । धर ध्यान सुनो ॥३॥ ऊहड़ मंत्री का लाला । त्रिलोकसिंह गुण वाला जी ॥ डसा पूणिया नाग उसे जाई। धरो ध्यान०॥४॥ दोहा-भई राज्य में खलबली, लुप्त भया डस नाग । ऊपलदे रोने लगा, छाया शोक अथाग ॥ १ ॥ (तर्ज-हाला वेगा श्रावोरे ) मंत्रवादी लावोरे । कुँवर बचावोरे मुँह माँगा मैं दै दूंगा हो जी ॥ टेर ॥ लावो जल्दी-दरे न करिये लगार। जावो जल्दी-ढूंढ़िये नगर मझार ॥ मं०१॥ सब वैद्य बुलाये-औषध दिया था लगाय । __पर कैसे होवे-चलता नहीं रे उपाय ॥ मं०२॥ मंत्रवादी-पाकर मंत्र चलाय । तंत्रवादी-मिल कर तंत्र बनाय ॥ मं० ३ ॥ सब हार गये-तनिक न विष को घटाय । सब ले शव चले आये जहाँ स्मशान ॥ मं०४ ॥ दोहा-देवी लघु साधु बनी, कहा एक को जाय । कुँवर तुम्हारा जो रहा, देते व्यर्थ जलाय ॥१॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ या-श्रीसवालों का इतिहास । (तर्ज़ पीलू ) १ ॥ जाय कहा तब भूप के आगे । कुँवर को साधु जीवित बतावे || || भूप कहे उसको यहाँ लाश्रो । सची सच्ची बात जावे ॥ बात करी देवी श्रदृश्य होगई। लोग उसे ढूँढन को जावे साधु को जाकर नहिं पाया। देखत देखत भेद न पावे ॥ लुगाद्रि गिरि पर वह ठहरे। शीघ्र वहाँ जा काम बनावे ॥ ४ ॥ ॥ ३ ॥ २ ॥ दोहा - भूप मंत्रि परजा सहित, ले श्रर्थी को साथ | जाय गुरू चरणों पड़े, कही कुँवर की बात ॥ १ ॥ ( तर्ज़ - भूलावें माई वीर कुँवर पालने ) यह कुँवर जिलावो करो बड़ा उपकार है ॥ ढेर ॥ गुरु पै या कुँवर जिलाया । हुवा हर्ष पार है ॥ य० १ ॥ मुकट चरण में रख कर बोला। लीजिये सभी अधिकार है ॥ ० २ ॥ गरजवंत अरु दरदवंत को नहीं कुछ भी इन्कार है ॥ य० ३ ॥ गुरु' कहे हम निज ने त्यागा । राज्य नहीं दरकार है ॥ य० ४ ॥ दोहा - धर्म लाभ दे गुरु कहे। सभी धर्म का सार । समकित शुद्ध स्वीकारिये । होवे आत्म सुधार ॥ १ ॥ ( १ ) - रत्नप्रभसूरि विद्याधरों के राजा थे । उन्होंने वैताढ्य का राज त्याग के दीक्षा ली थी। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपकेश वंश (न-चारी जाऊँरे सांवरिया तो पै वारणा रे) लेवो धार सदा उपकार के हिंसा टारना रे ॥ टेर ॥ परम धर्म स्वीकार करो अब, मिथ्या भाषण दूर करो सब । त्याग चोरी व्यभिचार । लोभ को टालना रे ॥१॥ राजा मंत्री सब मिल जनता । उपदेशगुरू का सिर पर धरता। बासक्षेप शिर डार । जैन पथ चालना रे ॥२॥ उपकेश पट्टन से कहलाये । उएश वंश सब के मन भाये ॥ गौत्र मुख्य अढार' साख बहु जानना रे ॥३॥ हर्ष वधाई हो गई घर घर । किरपा हुई गुरु की हम पर ।। सत बतलाया मार्ग, उसी पै चालना रे॥४॥ संवत् विक्रम चारसौ पहले, श्रोशियों वासी क्षत्रिय सघले ॥ फिर श्रोसवालर कहलाये, जैनी जानना रे ॥५॥ दोहा-पाव पाट छट्टे हुए, रत्नप्रभु सूरि राय । (७०) सत्तर संवत् वीर का, निर्णय समय सुपाय ॥१॥ (१)१-तातेहख २-बाफणा ३-करणावट ४-बलाहा (शंका) ५-मोरख (पुष्करणा) ६-कुलहट ७-विरहट (भटेवरा) ८-श्रीश्रीमान -श्रष्ठि (वैद्यमुत्ता) १०-संचेती १:-अदित्य नाग (चोरहिया) १२-भूरि (भूरंट) १३-भद्र (समदड़िया) १४चिंचट (देशरहा) १५-कुम्भट १६--डिडू (कोचर मुत्ता) १७-कनौजिया १८-लघु श्रेप्ठि। इनकी ४६८ जातियों का तो पता मिल चुका है ' (२) यह नाम विक्रम की ग्यारवीं शताब्दि में हुमा है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ या-श्रोसवालों का इतिहास। (तर्ज-खून जिगर को पीता हूँ) अव' मन्दिर यहाँ बनावरे । लोगों ने किया विचार ॥टेर॥ जो दिन में लोग बनावें । वह रात पड़े गिर जावे ॥ तब रत्न प्रभो को जतावे रे । दीजे यह विघ्न निवार ॥१॥ महावीर थापें दुःख जावे । कहें लोग कहां से लावें॥ मूर्ति एक देवी बनावे रे । कुछ दिन में हो तैयार ॥२॥ अब मूर्ति कैसे बनावें । जिसका भी हाल सुनावें ॥ गो पय संग रेती मिलावे रे । वैज्ञानिक कारोबार ॥३॥ गुरू पै देवी श्रावे । कर विनती वचन सुनावे ॥ सुन्दर अंग बन नहीं पावै रे। जब तक लो 'धीरज' धार ॥४॥ नहीं दूध मंत्रि ने पाया । ग्वाले को था धमकाया ॥ कर खोज भेद बतलाया रे । वर घोड़ा किया तयार ॥५॥ (1) उकेशपुर में ऊहड़ मंत्रि नारायण का मन्दिर पहिले ही से बन रहा था।२ उहड मंत्री की एक गाय थी जो अमृत सदृश दूध की देने वालीथी । वह जंगल में एक केर के झाड़ के पास जाती थी उसका दूध स्वयं भर जाता था । वह देवी दूध और रेती से महावीर की मूर्ति बना रही थी। दूध कम होने के कारण ग्वाले ने खोज की तो ज्ञात हुमा कि वहाँ देवी मूर्ति बना रही है। फिर तो देरी ही क्या थी ? वरघोड़ा की तैय्यारी कर सूरीजी को साथ लेकर वे गये । जमीन से मूर्ति निकाल हस्ती पर मारूढ़ कर रख माणिक मुक्ताफल से बाँध कर के Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपकेश वंश दोहा-उत्कंठा अतिही बढ़ी। सके न धीरज' धार । उसीरोज़ महि खोद के । मूर्ति लई निकार ॥१॥ (तर्ज-तेरा मौला मदीने बुलाले तुझे ) परतिष्टा सूरी से तत्काल हुई ॥ टेर॥ देह दो कर एक दिन में । कोरटा अरु श्रोशियों ॥ दोनों जगह में एक ली। स्थापित हुई हैं मूर्तियों ॥ जग में इस कारण ख्याति भई ॥ प० १॥ दिन-ब-दिन उपकेशपुर की। उन्नति होती रही। धन धान्य विद्या धर्म से थी। पूर्ण जग में हो रही॥ ____ जहाँ तहाँ पै इन की है बढ़ती हुई ॥ प० २॥ शोभा अति सुन्दर बनी । मुख से कही ना जायजी॥ जैसे जन वहाँ पर रहे थे। भोग वैसा पायजी॥ _____ सब जैनों की जाहोज़लाली रही । प० ३॥ बहुत' वर्षों तक वहाँ हालत सदा वैसी रही। मिथ्यात्व सब ही छूट कर वहाँ जैनों की बस्ती रही। पूरण मन्दिर जी की संभाल रही। प० ४॥ नगर में लाये पर कुछ जल्दी करने से मूर्ति के हृदय पर दो गाँठे रह गई। मार्गशीर्ष शुक्रा ५ को प्रोशियों व कोरटा में सूरीजी ने वैक्रय से दो रूप बना कर एक साथ प्रतिष्ठा कराई । वे दोनों मूर्तियाँ भाज भी विद्यमान हैं। १ मत प्रतिष्ठा से ३०३ वर्ष तक तो उपकेशपुर की बहुत बढ़ती रही। यह वर्णन बाद का है।। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ या-पोसवालों का इतिहास । दोहा-जिस दिन जल्दी खोद भू, मूरति लई निकाल । देखन में कुछ दीर्घ स्तन, रह गये थे उस काल ॥१॥ (तर्ज-वंशी वाले की।) सब जन मन धर के भक्ति पूरण । प्रेमभाव से रहते हैं ॥ टेर ॥ वीर जिनेश्वर की पूजा करने को। निशि दिन जाते हैं। वे देख देख कर उन्हीं स्तनों को। मन ही मन मुरझाते हैं ॥१॥ नवयुवक कहे वृद्ध लोगों से। दिखते हैं स्तन ये मिटवादो। तो वृद्ध कहें नहीं कार्य करो यह । विघ्न उपस्थित श्राय हुए ॥२॥ रत्न प्रभो ने करी प्रतिष्ठा । देवी ने मण्डान किया। सर्वार्थसिद्धि शुभ मुहूर्त में । मूर्ती को स्थापित लाय किया॥३॥ एक दिन पुरके सब वृद्ध गये। जब न्यातिजाति के कारज हित। पीछे से मिल नवयुवकों ने । वह कार्य किया पहिले जो चित्त॥४॥ दोहा-खाती को बुलवायके, टाँकी दई लगाय । रक्त धार बहने लगी, देखत सभी पलाय ॥१॥ (तर्ज-लख्या जे लेख ललाटारे।) खलबली हो रही रे संघ श्री। उपकेश पट्टन माँय ॥ टेर॥ संघ सकल मिल श्राय केरे । मनमें करे विचार । जाय कहो मुनिराज कोरे । दीजे विघ्न निवार ॥ख०१॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपकेश वंश mmr.......... मुनि कहे श्राबू' गिरि पर, कक्कसूरि पै जाय । बात कहो जैसी बनी रे, विघ्न मिटावे श्राय ॥ख०२॥ करी सवारी साँड़ की रे। गये सूरि के पास । शीघ्र पधारो कार्य सुधारो। रही आप पर श्राश ख०३॥ महा प्रभाविक पर उपकारो। घट घट जानन हार। बात सुनि गुरु लब्धि से। वहाँ हाज़र रहैं तय्यार खि०४॥ दोहा-पूजा शान्ति स्नात्र की, कक सूरीश्वर आय । वर्ष तीन सौ तीन में, दीया विघ्न मिटाय ॥ १ ॥ (तर्ज-गजल ) बहुत वर्षों बाद में, हालत बदलती ही रही। छोड़ कर जाते रहे, कुछ जैन की वस्ती रही। भ्यान पाया ओसवालों को, स्वयं मन्दिर तरफ़ । प्रबन्ध पूरा कर दिया, मिलता रहे ख़र्चा सिरफ ॥ "धोरज"कोजो जोशात था, वैसा यहाँ पर लिख दिया। शायद कमी हो रह गई तो, पूर्ण करना पंक्तियाँ । वेद सिद्धि निधि इन्दू वर्षे, श्रेष्ठ यह मधु मास है। कृष्ण पख में तीज को, शुभवार यह कवि वार है। दोहा-बच्छावत सेवा सदन । शहर सादड़ी माँहि। . ___ उसी स्थान पर है लिखा । पढ़ो सज्जन चित लाहि ॥१॥ , कुछ पहावलियों में माडत्यपुर भी लिखा मिलता है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ या-पोसवालों का इतिहास । जैन धर्म की महत्ता (तर्ज-फरमा दिया कमली वाले ने ।) सब धर्मों में यह पाला है पाला है जैन निराला है। सब चुन चुन कर नर लेय रहे तत्त्वों का यही मसाला है।टेर। ऐसे हैं जिनवर देव जिन्हें नहिं पक्षपात से चारा है। पाठों करमों को दूर किया शिवपुर में घर कर डाला है ॥१॥ गुरु जैनी हैं सतवादी ये नहीं पाप पथिक या रागी हैं। कञ्चन कामिनी कोत्याग सदा महा पाँच व्रतों को पाला है॥२॥ नहीं दुर्गति में गिरने देवे सद रस्ता धर्म बताता है। सम्यक् दर्शन और ज्ञान क्रिया से 'धीरज जैन उजाला है ॥३॥ पूजो रत्न सूरी महाराज मोक्ष की राह बताने वाले। थे नगर श्रोशियों आए सब को जैनी आप बनाये। जिन्हों का वंश श्रोसथपाए गोत्र अठारह बनाने वाले ॥पूर जग तारण तरण गुरुराज सुधारो भक्तों के सब काज । शरण में श्रायों की रख लाज दुःख सब दूर हटाने वाले।पूर तुम ही हो दीन दयाल करिये सेवक की प्रतिपाल । मिटादो कर्मों के जंजाल "शान” को अमर बनाने वाले ॥३॥ .इति श्री मोसवाल जातिय संक्षिप्त पत्रमय इतिहास समाप्तम. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .. उपफेरा वंश wmmmmmmmmmmmm आदर्श वीरपुत्र । (सङ्कलन कर्ता-श्रीनाथ मोदी "जैन" जोधपुर ।) देख कर जो विघ्न वाधाओं को घबराते नहीं । भाग पर रह करके जो पीछे हैं पछताते नहीं । काम कितना ही कठिन हो पर जो उकताते नहीं । भीड़ पड़ने पर भी जो चञ्चल हैं दिखलाते नहीं ॥१॥ श्राज जो करना है कर देते हैं उसको आज ही । सोचते कहते हैं जो कुछ कर दिखाते हैं वही । मानते जी की हैं सुनते हैं सदा सबकी कही । जो मदद करते हैं अपनी इस जगत में प्रापही ॥२॥ भूल कर वे दूसरे का मुँह कभी तकते नहीं। कौन ऐसा काम है वे कर जिसे सकते नहीं। आज कल करते हुए जो दिन गंवाते हैं नहीं। यत्न करने में कभी जो जी चुराते हैं नहीं ॥३॥ चिल चिलाती धूप को जो चाँदनी देवें बना । काम पड़ने पर करें जो शेर का भी सामना । हँसते हँसते जो चबा लेते हैं लोहे का चना । "है कठिन कुछ भी नहीं" जिनके है जी में यह ठना ॥४ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ या-पोसवालों का इतिहास। होते हैं एक पान में उनके बुरे दिन भी मले। सब जगह सब काम में रहते हैं वे फूले फले। बात है वह कौन होती जो नहीं उनके किये। वे नमूना श्राप बन जाते हैं औरों के लिये ॥५॥ कोस कितने भी चलें पर वे कभी थकते नहीं। कौनसी है गाँठ जिसको खोल सकते वे नहीं। काम को प्रारम्भ करके छोड़ते हैं वे नहीं । सामना कर भूल करके मोड़ते मुख वे नहीं ॥६॥ ठीकरी को वे बना देते हैं सोने की डली । रंग को करके दिखा देते हैं वे सुन्दर खली । वे बबूलों में लगा देते हैं चम्पे की कली । काक को भी वे सिखा देते हैं कोकिल काकली ॥७॥ उसरों में हैं खिला देते अनूठे वे कमल । वे लगा देते हैं उकठे काठ में भी फूल फल । बन गया हीरा उन्हीं के हाथ से है कारबन । काँच को करके दिखा देते हैं वे उज्ज्वल रतन ॥८॥ पर्वतों को काट कर सड़कें बना देते हैं वे। सैकड़ों मरुभूमि में नदियाँ बहा देते हैं वे। अगम जलनिधि गर्भ में बेड़ा चला देते हैं वे। जङ्गलों में भी महा मङ्गल रचा देते हैं वे ॥६॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपकेश वंश कार्य थल को वे कभी नहिं पूछते वह है कहाँ। कर दिखाते हैं असम्भव को वही सम्भव यहाँ / उलझने श्राकर उन्हें पड़ती हैं जितनी ही जहाँ / वे दिखाते हैं नया उत्साह उतना ही वहाँ // 10 // जो रुकावट डाल कर होवे कोई पर्वत खड़ा। तो उसे देते हैं अपनी युक्तियों से वे उड़ा। बीच में पड़ कर जलधि जो काम देवे गड़बड़ा। तो बना देंगे उसे वे क्षुद्र पानी का घड़ा // 11 // सब तरह से आज जितने देश हैं फूले फले / बुद्धि विद्या धन विभव के हैं जहाँ डेरे डले / वे बनाने से उन्हीं के बन गये इतने भले / वे सभी हैं हाथ से ऐसे सपूतों से पले // 12 // NE . 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