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सहस्र अष्टादश निज कुटुम्बी
और भी परजा हुई घनी है ॥ हाँ०३ ||
तीन लक्ष चौरासी' हज़ार सब
उपकेश वंश
क्षत्रिय बस्ती शौर्य सनी है ॥ हाँ०४||
दोहा - शोभा से संयुक्त वह, नगरी बनी विशाल ।
धन धान्य व्यापार से, सब जन थे खुशहाल ॥ १ ॥ ( तर्ज - मोरा दे मैया प्यारा लगे तोरा जैया )
अचल गढ़ ऊपर रत्न प्रभु थे पधारे। अचल० ॥ टेर ॥ चौदह पूर्व के धारी सूरीश्वर । श्रुत केवली अनगार । लब्धि संपन्न श्रागम विहारी । गुण से भरे भंडार जी || श्र० २ ॥ विहार करते आप पधारे । शिष्य पाँच सौ साथ ।
मास खमण से करे पारणा | चमत्कार था हाथ जी ॥ श्र०३ ॥ अचलगढ़ की नामी देवी । चक्रेश्वरी था नाम । कठिन तपस्या देख गुरू की। करे भक्ति गुण गान जी ॥ श्र० ४ || गुर्जर प्रान्त विचरने कारण | गुरु ने किया विचार 1 मरुभूमि में जाने से हो। देवी कह उपकार जी ॥ श्र०५ ॥ दोहा - उपयोग दे गुरु लख लिया, जान लिया सब सार । मारवाड़ में दया धर्म का, होवेगा विस्तार ॥१॥
१ पांच लक्ष घरोंमें, पत्रिय वर्ण के ३८४००० घर माने जाते थे ।
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