Book Title: Upkesh Vansh
Author(s): Unknown
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushapmala

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Page 12
________________ उपकेश वंश mmr.......... मुनि कहे श्राबू' गिरि पर, कक्कसूरि पै जाय । बात कहो जैसी बनी रे, विघ्न मिटावे श्राय ॥ख०२॥ करी सवारी साँड़ की रे। गये सूरि के पास । शीघ्र पधारो कार्य सुधारो। रही आप पर श्राश ख०३॥ महा प्रभाविक पर उपकारो। घट घट जानन हार। बात सुनि गुरु लब्धि से। वहाँ हाज़र रहैं तय्यार खि०४॥ दोहा-पूजा शान्ति स्नात्र की, कक सूरीश्वर आय । वर्ष तीन सौ तीन में, दीया विघ्न मिटाय ॥ १ ॥ (तर्ज-गजल ) बहुत वर्षों बाद में, हालत बदलती ही रही। छोड़ कर जाते रहे, कुछ जैन की वस्ती रही। भ्यान पाया ओसवालों को, स्वयं मन्दिर तरफ़ । प्रबन्ध पूरा कर दिया, मिलता रहे ख़र्चा सिरफ ॥ "धोरज"कोजो जोशात था, वैसा यहाँ पर लिख दिया। शायद कमी हो रह गई तो, पूर्ण करना पंक्तियाँ । वेद सिद्धि निधि इन्दू वर्षे, श्रेष्ठ यह मधु मास है। कृष्ण पख में तीज को, शुभवार यह कवि वार है। दोहा-बच्छावत सेवा सदन । शहर सादड़ी माँहि। . ___ उसी स्थान पर है लिखा । पढ़ो सज्जन चित लाहि ॥१॥ , कुछ पहावलियों में माडत्यपुर भी लिखा मिलता है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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