Book Title: Upkesh Vansh Author(s): Unknown Publisher: Ratnaprabhakar GyanpushapmalaPage 16
________________ उपकेश वंश कार्य थल को वे कभी नहिं पूछते वह है कहाँ। कर दिखाते हैं असम्भव को वही सम्भव यहाँ / उलझने श्राकर उन्हें पड़ती हैं जितनी ही जहाँ / वे दिखाते हैं नया उत्साह उतना ही वहाँ // 10 // जो रुकावट डाल कर होवे कोई पर्वत खड़ा। तो उसे देते हैं अपनी युक्तियों से वे उड़ा। बीच में पड़ कर जलधि जो काम देवे गड़बड़ा। तो बना देंगे उसे वे क्षुद्र पानी का घड़ा // 11 // सब तरह से आज जितने देश हैं फूले फले / बुद्धि विद्या धन विभव के हैं जहाँ डेरे डले / वे बनाने से उन्हीं के बन गये इतने भले / वे सभी हैं हाथ से ऐसे सपूतों से पले // 12 // NE . Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.comPage Navigation
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