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या-पोसवालों का इतिहास ।
दोहा-जिस दिन जल्दी खोद भू, मूरति लई निकाल ।
देखन में कुछ दीर्घ स्तन, रह गये थे उस काल ॥१॥
(तर्ज-वंशी वाले की।)
सब जन मन धर के भक्ति पूरण । प्रेमभाव से रहते हैं ॥ टेर ॥ वीर जिनेश्वर की पूजा करने को। निशि दिन जाते हैं। वे देख देख कर उन्हीं स्तनों को। मन ही मन मुरझाते हैं ॥१॥ नवयुवक कहे वृद्ध लोगों से। दिखते हैं स्तन ये मिटवादो। तो वृद्ध कहें नहीं कार्य करो यह । विघ्न उपस्थित श्राय हुए ॥२॥ रत्न प्रभो ने करी प्रतिष्ठा । देवी ने मण्डान किया। सर्वार्थसिद्धि शुभ मुहूर्त में । मूर्ती को स्थापित लाय किया॥३॥ एक दिन पुरके सब वृद्ध गये। जब न्यातिजाति के कारज हित। पीछे से मिल नवयुवकों ने । वह कार्य किया पहिले जो चित्त॥४॥ दोहा-खाती को बुलवायके, टाँकी दई लगाय ।
रक्त धार बहने लगी, देखत सभी पलाय ॥१॥
(तर्ज-लख्या जे लेख ललाटारे।)
खलबली हो रही रे संघ श्री। उपकेश पट्टन माँय ॥ टेर॥ संघ सकल मिल श्राय केरे । मनमें करे विचार । जाय कहो मुनिराज कोरे । दीजे विघ्न निवार ॥ख०१॥
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