Book Title: Upkesh Vansh Author(s): Unknown Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushapmala View full book textPage 9
________________ या-श्रोसवालों का इतिहास। (तर्ज-खून जिगर को पीता हूँ) अव' मन्दिर यहाँ बनावरे । लोगों ने किया विचार ॥टेर॥ जो दिन में लोग बनावें । वह रात पड़े गिर जावे ॥ तब रत्न प्रभो को जतावे रे । दीजे यह विघ्न निवार ॥१॥ महावीर थापें दुःख जावे । कहें लोग कहां से लावें॥ मूर्ति एक देवी बनावे रे । कुछ दिन में हो तैयार ॥२॥ अब मूर्ति कैसे बनावें । जिसका भी हाल सुनावें ॥ गो पय संग रेती मिलावे रे । वैज्ञानिक कारोबार ॥३॥ गुरू पै देवी श्रावे । कर विनती वचन सुनावे ॥ सुन्दर अंग बन नहीं पावै रे। जब तक लो 'धीरज' धार ॥४॥ नहीं दूध मंत्रि ने पाया । ग्वाले को था धमकाया ॥ कर खोज भेद बतलाया रे । वर घोड़ा किया तयार ॥५॥ (1) उकेशपुर में ऊहड़ मंत्रि नारायण का मन्दिर पहिले ही से बन रहा था।२ उहड मंत्री की एक गाय थी जो अमृत सदृश दूध की देने वालीथी । वह जंगल में एक केर के झाड़ के पास जाती थी उसका दूध स्वयं भर जाता था । वह देवी दूध और रेती से महावीर की मूर्ति बना रही थी। दूध कम होने के कारण ग्वाले ने खोज की तो ज्ञात हुमा कि वहाँ देवी मूर्ति बना रही है। फिर तो देरी ही क्या थी ? वरघोड़ा की तैय्यारी कर सूरीजी को साथ लेकर वे गये । जमीन से मूर्ति निकाल हस्ती पर मारूढ़ कर रख माणिक मुक्ताफल से बाँध कर के Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.comPage Navigation
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