Book Title: Upkesh Vansh
Author(s): Unknown
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushapmala

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Page 7
________________ या-श्रीसवालों का इतिहास । (तर्ज़ पीलू ) १ ॥ जाय कहा तब भूप के आगे । कुँवर को साधु जीवित बतावे || || भूप कहे उसको यहाँ लाश्रो । सची सच्ची बात जावे ॥ बात करी देवी श्रदृश्य होगई। लोग उसे ढूँढन को जावे साधु को जाकर नहिं पाया। देखत देखत भेद न पावे ॥ लुगाद्रि गिरि पर वह ठहरे। शीघ्र वहाँ जा काम बनावे ॥ ४ ॥ ॥ ३ ॥ २ ॥ दोहा - भूप मंत्रि परजा सहित, ले श्रर्थी को साथ | जाय गुरू चरणों पड़े, कही कुँवर की बात ॥ १ ॥ ( तर्ज़ - भूलावें माई वीर कुँवर पालने ) यह कुँवर जिलावो करो बड़ा उपकार है ॥ ढेर ॥ गुरु पै या कुँवर जिलाया । हुवा हर्ष पार है ॥ य० १ ॥ मुकट चरण में रख कर बोला। लीजिये सभी अधिकार है ॥ ० २ ॥ गरजवंत अरु दरदवंत को नहीं कुछ भी इन्कार है ॥ य० ३ ॥ गुरु' कहे हम निज ने त्यागा । राज्य नहीं दरकार है ॥ य० ४ ॥ दोहा - धर्म लाभ दे गुरु कहे। सभी धर्म का सार । समकित शुद्ध स्वीकारिये । होवे आत्म सुधार ॥ १ ॥ ( १ ) - रत्नप्रभसूरि विद्याधरों के राजा थे । उन्होंने वैताढ्य का राज त्याग के दीक्षा ली थी। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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