Book Title: Upkesh Vansh
Author(s): Unknown
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushapmala

Previous | Next

Page 6
________________ उपकेश वंश राजा का इधर जवाई । सह पनि महल में जाई जी॥ सोता मन हर्ष मनाई । धर ध्यान सुनो ॥३॥ ऊहड़ मंत्री का लाला । त्रिलोकसिंह गुण वाला जी ॥ डसा पूणिया नाग उसे जाई। धरो ध्यान०॥४॥ दोहा-भई राज्य में खलबली, लुप्त भया डस नाग । ऊपलदे रोने लगा, छाया शोक अथाग ॥ १ ॥ (तर्ज-हाला वेगा श्रावोरे ) मंत्रवादी लावोरे । कुँवर बचावोरे मुँह माँगा मैं दै दूंगा हो जी ॥ टेर ॥ लावो जल्दी-दरे न करिये लगार। जावो जल्दी-ढूंढ़िये नगर मझार ॥ मं०१॥ सब वैद्य बुलाये-औषध दिया था लगाय । __पर कैसे होवे-चलता नहीं रे उपाय ॥ मं०२॥ मंत्रवादी-पाकर मंत्र चलाय । तंत्रवादी-मिल कर तंत्र बनाय ॥ मं० ३ ॥ सब हार गये-तनिक न विष को घटाय । सब ले शव चले आये जहाँ स्मशान ॥ मं०४ ॥ दोहा-देवी लघु साधु बनी, कहा एक को जाय । कुँवर तुम्हारा जो रहा, देते व्यर्थ जलाय ॥१॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16