Book Title: Updesh Tarangini
Author(s): Ratnamandir Gani, Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek Samiti
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उपदेशतरंगिणी. ते नीचे प्रमाणेवसुधान्नरणं पुरुषः, पुरुषान्तरणं प्रधानतरलक्ष्मीः ॥ लक्ष्म्यानरणं दानं, दानान्तरणं सुपात्रं च ॥१॥
अर्थ- पुरुष ने ते पृथ्वीन आभूषण , अने उत्तम लक्ष्मी ते पुरुषर्नु आजूषण बे, लक्ष्मीनुं आजूषण दान , अने दानबाजूषण सुपात्र जे. ॥१॥
परमार्थथी चतुर माणसोए पुरुषोनेज पृथ्वीना आजूषणरूप कहेला ने, केमके, जगतमा जे उत्तम लावो थाय ने, ते सघला उत्तम पुरुषना अवतारथी थाय जे. जेमके, पुरुषोमां सिंहसमान एवा तीर्थकर महाराज ज्यारे विचरे , त्यारे आ पृथ्वी मणिना, सुवर्णना तथा रुपाना त्रण गढोवाली, चार घारवालांसमोसरणवाली, देवोए करेलां सुवर्णमय कमलोवाली, घुटणपर्यंत सुगंधि पुष्पोना समूहवाली, अशोकवृक्ष तथा सर्व शतुनी वनस्पति, पुष्प, तथा फलोना जारथी नूषित थाय , तेम मरकी, उकाल,जय, ति, वैर, तथा रोग आदिकना उपनवो विनानी श्राय जे. तेम चक्रवर्ती, तथा वासुदेव आदिक (त्रेसन) शलाका पुरुषो राज्य करते ते नाना प्रकारनां नगरोनी स्थापना, मोटा मेहेलो, बगीचा, वावडी, कुवा, तलाव, किला, खाल,कुंगो,परबो, मगे तथा देवमंदिरोथी पृथ्वी सुंदर थाय ने तेम चोरोनी धाड, कुलटा स्त्री, लुटारानां टोलां आदिक मुष्टोनां कष्टोनी श्रेणिउथी रहित अश्ने मनोहर श्राय बे. शास्त्रमा पण कडं ने के, पुरिसेहिं रश्य तित्थं, न दु पुरिसा हुँति तित्थरश्यावि॥ श्तो पवरं तित्थं, पुरिसं पन्नणंति सव्वणू ॥१॥ पुरिसान होइ तित्थं, न हुंति तित्थान तिहुअणे पुरिसा॥ सलिलान हव धणं, नो नीरं होश् धणा ॥२॥

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