Book Title: Upasakdashang Sutra Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh View full book textPage 4
________________ समर्पण सोरठ सप्तक सुत जड़ाव मुल्तान, अंतेवासी रतन को। गुरु समर्थ गुण-खान, पाल सुसंजम जस लियो॥१॥ रतन सिरेमल सेव, अठावीस छह वर्ष लग। पाय ज्ञान रस मेव, धन खीचन नगरी भई॥२॥ पावस पाली पेख, प्रात करत पडिलेहणा। ज्ञान क्रिया गुण देख, चित्त चकोर पाया शशि॥३॥ बालोतरा मझार, समभावे सही वेदना। वैयावच्च जयकार, किम भूलूँ वे दिन भला॥४॥ बहुक्षुतजी महाराज, गिरा करोड़ों जो कसै। श्रमणश्रेष्ठ गुरुराज, गीतारथ तुम जग कहे॥५॥ जैसा सुणिया भाव, तव तव अंतेवासी सुं। सप्तम अंग अनुवाद, हुकम बजायो 'रतन" रो॥६॥ करे समर्पित केम, जो अर्पित चरणे सदा? चहे कुशलता खेम, भव भव शरणो घीसियो॥७॥ (द्वारा-श्री घीसूलालजी पितलिया सिरियारी पूर्व आवृत्ति में से) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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