Book Title: Tulsi Prajna 2004 07
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 5
________________ अनेक और एक तुम शाखाओं की अनेकता देख चिन्तित मत बनो। तुम देखो उनका मूल एक है। अनेकता का अर्थ विरोध ही नहीं होता, विकास भी होता है। तुम दूध और पानी की एकता देख हर्षित मत बनो। इनका मूल एक नहीं है। एकता का अर्थ संवर्धन ही नहीं होता, शक्ति का अल्पीकरण भी होता है। हीन व्यक्तियों को देखकर हीन होने वाले कितने हैं, परन्तु वे विरले हैं, जो दीनों का उद्धार करें। - अनुशास्ता आचार्य महाप्रज्ञ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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