Book Title: Tulsi Prajna 2004 07
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 18
________________ रूप से द्रव्य माना गया है। आचार्यश्री ने सभी द्रव्यों के संक्षिप्त लक्षण दिए हैं, जो तत्त्वार्थसूत्र से पूर्णतः साम्य रखते हैं। 1. धर्मद्रव्य - गतिसहायो धर्मः जीव और पुद्गल की गति में उदासीन भाव से अनन्य सहायक द्रव्य धर्मास्तिकाय है। 2. अधर्मद्रव्य - स्थितिसहायोऽधर्मः। जीव और पुद्गलों के ठहरने में उदासीन भाव से अनन्य सहायक द्रव्य अधर्मास्तिकाय है। 3. आकाशद्रव्य - अवगाहलक्षण आकाशः सभी द्रव्यों को स्थान देने वाला द्रव्य आकाशास्तिकाय है। यहाँ पर वृत्ति में आचार्य श्री तुलसी ने स्पष्ट किया है कि दिशाएँ भी आकाश स्वरूप ही हैं, वे स्वतन्त्र द्रव्य नहीं है। 4. पुद्गलद्रव्य - स्पर्शरसगन्धवर्णवान् पुद्गलः शब्द-बन्ध-सौक्ष्य-स्थौल्य-संस्थान-भेद-तमश्छायातपोद्योत प्रभावांश्च। 5. जीव - उपयोग लक्षणो जीवः उपयोग लक्षण वाला जीव होता है। चेतना के व्यापार को उपयोग कहते हैं। 6. काल - कालः समयादिः समय, आवलिका, मुहूर्त आदि को काल कहते हैं। यह काल वर्तना, परिणाम, क्रिया, परत्व, अपरत्व आदि के द्वारा जाना जाता है। तत्त्वार्थसत्र की सरणि का उपर्युक्त लक्षणों में पूरा उपयोग किया गया है, किन्तु जैनसिद्धान्तदीपिका में परमाणु आदि के लक्षण भी दिए गए हैं, यथा परमाणु - अविभाज्यः परमाणुः। अविभाज्य पुद्गल ही परमाणु है। स्कन्ध - तदेकीभावः स्कन्धः। परमाणुओं का एकीभाव स्कन्ध है। देश - बुद्धिकल्पितो वस्त्वंशो देशः। वस्तु का बुद्धि कल्पित अंश देश है। प्रदेश - निरंशः प्रदेशः । वस्तु के निरंश अंश को प्रदेश कहते हैं। (8) जैन सिद्धान्त दीपिका में सभी द्रव्यों के सामान्य और विशेष गुणों को योजित किया गया है। सामान्य गुण हैं- 1. अस्तित्व, 2. वस्तुत्व, 3. द्रव्यत्व, 4. प्रमेयत्व, 5. प्रदेशवत्व, 6. अगुरूलघुत्व। विशेष गुण 16 प्रतिपादित हैं- 1. गति हेतुत्व, तुलसी प्रज्ञा जुलाई-दिसम्बर, 2004 - - 13 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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