Book Title: Tulsi Prajna 2004 07
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 26
________________ बिगड़ कर कत्यूर हुआ हो । अधिकांशतः यहाँ टूटी हुई मूर्तियाँ हैं । राहुल सांकृत्यायन के अनुसार यहाँ एक जली हुई कथित बुद्ध मूर्ति भी है । इस तरह बौद्ध धर्म के प्राचीनकाल में कुमाऊँ में व्यापक प्रभाव के अनेक प्रमाण मिलते हैं । यद्यपि वर्तमान में कुमाऊँ से बौद्धधर्म लुप्तप्राय हो चुका है। उपरोक्त विस्तृत विवरण के निष्कर्ष स्वरूप कहा जा सकता है कि कुमाऊँवासियों लिए जैन और बौद्ध धर्म या विचारधारा सर्वथा अनजानी वस्तु नहीं थे । यहाँ के लोगों का उनसे वैचारिक ही नहीं, आस्था और पूजन के स्तर पर भी परिचय रहा है । यद्यपि वर्तमान समय में यहाँ जैन और बौद्ध दोनों धर्मों का प्रभाव नगण्य-सा ही है । पर्वतीय क्षेत्र . होने से समय-समय पर भूस्खलन, प्राकृतिक आपदायें यहाँ की नियति रही हैं। यहाँ की मिट्टी की तहें अपने अन्दर कितनी सांस्कृतिक धरोहरों और धार्मिक सौमनस्य के चिह्नों को अपने अन्दर छुपाए हैं- यह कहा नहीं जा सकता। पुरातात्त्विक दृष्टिकोण से यदि इस क्षेत्र की खोजबीन, उत्खनन आदि किया जाए तो सम्भवत: कई नवीन और रोचक तथ्य उद्घाटित हो सकते हैं । सन्दर्भ 1. भारत के मन्दिर, भारत सरकार, प्रकाशन विभाग 2. भारतीय दर्शन, बलदेव उपाध्याय, पृ. 76 3. कुमाऊँ के देवालय, जगदीश्वरी प्रसार, पृ. 3 4. मध्यकालीन साहित्य में अवतारवाद, डॉ. कपिलदेव पाण्डेय, पृ. 368--369 5. जैनधर्म क्या कहता है? पृ. 11 6. अल्मोड़ा जनपद: पुरातात्विक दृष्टिकोण, आस्था, 1989-92, अंक, 10, कुमाऊँ विश्वविद्यालय, अल्मोड़ा की पत्रिका, डी. एन. तिवारी 7. कुमाऊँ के देवालय, जगदीश्वरी प्रसाद, पृ. 208 8. द आर्ट ऑप चम्बा इन द इस्लामिक रीरिअड, एच. गोएट्ज, जर्नल ऑफ ओरिएण्टल इन्स्टीट्यूट, बड़ौदा, खण्ड-1, दिसम्बर 1961 9. कुमाऊँ के देवालय, जगदीश्वरी प्रसाद, पृ. 208 10. नैनीताल की जैन तीर्थंकर प्रतिमा, श्री नन्दादेव महोत्सव, नैनीताल की स्मारिका, 1978, ताराचन्द्र त्रिपाठी, पृष्ठ 29-31 11. वही, तुलसी प्रज्ञा जुलाई - दिसम्बर, 2004 Jain Education International For Private & Personal Use Only 21 www.jainelibrary.org

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