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चामुंडराज
(सिंध के राजा को विजय करने वाला)
( अवन्तिनरेश राजा मुंज को संतापित करने वाला)
1 दुर्लभराज
वल्लभराज
2
खंड २१,
(लाट देश के राजा को मथ कर दण्ड वसूलने वाला)
1
भीमदेव
-
क्षेमराज
1
देवप्रसाद
त्रिभुवनपाल
( जिसके पुत्र कुमारपाल ने जयसिंह सिद्धराज का उत्तराधिकार पाया )
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- कर्णदेव
जयसिंह सिद्धराज
इस वंशवृक्ष को देखने से विदित होता है कि चालुक्य उत्तर से दक्षिण में गये हैं और पुनः वापस उत्तर में आकर आबू मण्डल के अधीश्वर बनें और फिर गुर्जरदेश के सोलंकी - राजवंश के संस्थापक ।
बीदासर ने अपने ग्रन्थ
इसीलिये ठाकुर बहादुरसिंह, क्षत्रिय जाति की सूची ( पृ० १०८ ) में लिखा है "सोलंकी (चौलुक्य) प्रथम सोखं ( सोरमगढ़) में थे फिर दक्षिण में गये। वहां से बरास्ता मधुपद्म होते हुए एक शाखा अनहलवाड़े (पाटन) में आई।” यह कथन इतिहास - सम्मत है । क्योंकि आबू पर चौलुक्यों के अधिकार होने से पूर्व वि० सं० ८७२ में नागभट्ट (द्वितीय) ने अपनी राजधानी श्रीमाल से हटाकर कन्नौज में स्थापित की थी और उसे मुंगेर ( मुद्गगिरि) के पालों पर आशानुकूल विजय भी मिली किन्तु दूर चले जाने से कालंजर और गुर्जरत्रा के मंडलीक स्वतन्त्र होने लगे । भोज I ( वि० सं० ८९३-९४७ ) के समकालिक वाउक राजा के लेख से ज्ञात होता है कि उसने नंदावल्ल को मारा, मयूर राजा का वध किया और ९ मण्डलों के संघ का दमन किया । जब भोज बंगाल - अभियान में व्यस्त था तो "मंडोर के प्रतिहार संभवतः कक्कुक के राजत्वकाल (वि० सं० ९००-९१८) में किसी समय स्वतंत्र वन बैठे । १४
इसी समय अर्बुदाचल के प्रतिहार मंडलीक ने भी बगावत की और वह भी स्वतंत्र हो गया । भोज I ने इन मंडलीकों के विरूद्ध दमन और भेद की नीति अपनाई जिससे मंडलीकों में पारस्परिक एकता का अभाव हो गया; इसलिए जब राम चालुक्य ने आबू पर आक्रमण किया तो वहां का मण्डलीक अपनी स्वतंत्रता नहीं बचा सका और आबू पर सोलंकियों का शासन स्थापित हो गया । राम का उत्तराधिकारी उसका पुत्र सहजराम हुआ जिसने तीन लाख घुड़सवारों के स्वामी शकपति को
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