Book Title: Tulsi Prajna 1996 04
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati
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५१. दव्वावाए दोनि उ, वाणियगा भायरो धणनिमित्तं । वहपरिणएक्क मेक्कं, दहम्मि मच्छेण निव्वेओ ।। ५२. खेत्तम्मि अवक्कमणं, दसारवग्गस्स होइ अवरेणं । दीवायणो' य काले, भावे मंडुक्कियाखवओ' ।। ५३. सिक्खगअसिक्खगाणं, संवेगथिरट्टयाइ दोहं पि । दवाइयाइ एवं दंसिज्जते 'अवाया उ" | ५४. दवियं कारणगहियं, विगिचियव्वमसिवाइ खेत्तं च । बारसहिं एस्सकालो, कोहाइविवेग भावम्मि || ५५. दव्वादिएहि निच्चो, एगतेणेव 'जेसि अप्पा" उ ।
होति अभावो तेसिं, सुह- दुहसंसारमोक्खाणं ॥ ५६. सुहदुक्खसंपओगो', न 'विज्जई निच्चवाय पक्खम्मि" । एगंतुच्छेयमय, सुहदुक्खविकप्पणमजुत्तं ॥ ५७. एमेव चउविगप्पो, होइ उवाओ वि तत्थ दव्वम्मि । 'धातुव्वाओ पढमो", नंगलकुलिएहि खेत्तं तु ॥ ५८. कालो य नालियाइहिं", होइ भावम्मि पंडिओ अभओ । 'चोरनिमित्तं नट्टिय'", वड्डुकुमारि परिकहेति ॥ ५९. एवं तु इहं" आया, पच्चक्ख" अणुवलब्भमाणो वि । सुहदुक्खमादिएहि, गिज्झइ हेऊहिं अस्थि ति ।।
१. देवा० ( अ, ब ) ।
२.०
खमओ (ब) ।
३. अवायाओ (अ) ।
४. एस० ( अ ) ।
५. जेसिमप्पा ( अ ) ।
६. ० दुह० (हा ) ।
७. संभवति णिच्चपक्खवातम्मि (अचू ) ।
८.
. मुद्रित अचू में यह गाथा उद्धृत गाथा के रूप में हैं ।
९. पाठांतरं वा - धातुव्वाओ भणिओ (हाटी) ।
१०. ०याईहि (ब, रा) ।
११. चोरस्स कए नट्टिय (रा), चोरस्स कए नट्टि (हा), टीकाकार ने इस पद की व्याख्या न कर 'चोरनिमित्तं नट्टिय' पद की व्याख्या की है । हमने इस पाठ को मूल मानकर
टीका के मुद्रित पाठ को पाठांतर में दिया है ।
१२. अहं ( अ ) ।
१३. प्रत्यक्षमिति तृतीयार्थे द्वितीया (हा ) ।
खण्ड २२ अंक १
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