Book Title: Tulsi Prajna 1996 04
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 153
________________ ९०. जं भत्त-पाण-उवगरण - वसहि सयणासणादिसु जयंति' । फासुयमकयमकारियमणणुमतमणुद्दिसित भोई' 11 ९१. अप्फासुयौं- कय-कारित अणुमय- उद्दिट्टभोइणो हंदि ! | तस - थावर हिंसाए, जणा अकुसला उ लिप्पंति' ।। ९२. जह 'भमरो त्ति" य एत्थं, दिट्ठतो होति आहरणदेसे । चंदमुहिदारिगेय", सोमत्तवधारणं ण सेसं ॥ ९३. एवं भमराहरणे, अणिययवित्तित्तणं न सेसाणं । गहणं दिट्ठतविसुद्धि, सुत्त भणिया इमा चन्ना' ।। ९४. एत्थ य भणेज्ज कोई, समणाणं की रए" सुविहियाणं । पाकोवजी विणो त्ति य, लिप्तारंभदोसेणं ॥ १. जयंती ( अ ) । २. फासूय-अक- अकारिय- अणणुमयाणुदिट्ठभोई य (हा ) • मकय अकारिय अणुमयमणुदिट्ठभोइ य ( रा ) । ३. अफासुय (हा), न फाय (जिचू ) । ४० भोयणो (हा ) । ५ ९०,९१ ये दोनों गाथाएं दोनों चूर्णियों में निर्युक्तिगाथा के रूप में निर्दिष्ट हैं । हरिभद्र ने अपनी व्याख्या में इन गाथाओं के विषय में 'भाष्यकृद्' या 'निर्युक्तिकृद्' - ऐसा कोई उल्लेख नहीं किया है । किन्तु मुद्रित टीका की प्रति में इन गाथाओं के आगे 'भाष्यम्' का उल्लेख है । हमने इन्हें निगा के क्रम में रखा है । ६. भमरा तू (जिचू) । ७. ० दारुकेयं ( रा ) । 5. सुत्ते (रा) । ९. इस गाथा के बारे में दोनों चूणियों में कोई उल्लेख नहीं है किन्तु विषयवस्तु की दृष्टि से यह पूर्व गाथा से जुड़ी हुई है अत संभव है चूर्णिकार ने सरल समझकर इसकी व्याख्या न की हो। इसके अतिरिक्त इसी गाथा की 'इमा चन्ना' शब्द की व्याख्या में टीकाकार कहते हैं कि 'इयं चान्या सूत्रस्पर्शिक नियुक्तिाविति, (हाटी प ६५) अत स्पष्ट है कि यह निर्युक्तिगाथा है । १०. तत्थ (जिचू ) । ११. की रई ( अ, ब ), कीरती ( अचू ) । १२. पागोव ० ( हा, ब) पावोव ० १६ Jain Education International (रा) । For Private & Personal Use Only तुलसी प्रज्ञा www.jainelibrary.org

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