Book Title: Tulsi Prajna 1996 04
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 193
________________ 'कर्मवाद' विशेषांक पर प्रतिक्रियाएं तुलसी प्रज्ञा के कर्मवाद-विशेषांक पर सुधी पाठकों की प्रतिक्रियाएं प्राप्त हुई हैं। इन प्रतिक्रियाओं में कुछ ऐसे महानुभावों से हैं जो 'तुलसी प्रज्ञा' से चिरकाल से जुड़ें हैं । केवल चार प्रतिक्रियाएं प्रकाशित की जा रही हैं। १. ७८ वर्षीय सुधी पाठक शां० के० शहा (सांगली) लिखते हैं-"यह अंक हमारे जैसे सामान्य श्रावकों के लिए एक बड़ा उपहार है। सिर्फ यह अंक मनःपूर्वक पढ़ा जाय तो कर्म-सिद्धान्त की पूर्ण माहिती हो जाएगी। यह कृपा के लिए सर्व सामान्य श्रावकों के तरफ से आपको धन्यवाद ।" २. सेवा-निवृत प्रधानाचार्य रामस्वरूप सोनी (डीडवाना) लिखते हैं ---"सामान्य विषयों पर प्रकाशित पत्र-पत्रिकाएं कुकुरमत्ते के छत्ते की भांति यत्र तत्र बिखरी पड़ी हैं जिनके सम्पादक भी भारी मात्रा में उपलब्ध होते रहते हैं, परन्तु 'तुलसी प्रज्ञा' जैसी त्रैमासिक पत्रिका टेक्निकल विषयो पर जिस शान से अपने उद्देश्यों को सार्थक कर रही है और पत्रकारिता में नूतन आयाम स्थापित कर रही है, उससे आपकी संपादन कला में चार चांद लग रहे हैं।" ३. वयोवृद्ध जैन दर्शन मर्मज्ञ पं० अमृतलालजी जैन (वाराणसी) लिखते हैं : "आपकी विद्वत्ता आपकी याद दिला रही है और इस जीवन के अन्त तक दिलाती ही रहेगी। आप अपने ढंग के एक ही विद्वान् हैं - यह मैंने वहां १३३ वर्ष रहकर अनुभव किया।" ४. जैन केन्द्र, रीवा के निदेशक, डॉ० नंदलाल जैन लिखते हैं ---"यह अंक कर्मवाद के विविध पक्षों पर अच्छा प्रकाश डालता है। कर्मवाद के संबंध में ऐसी महत्त्व पूर्ण सामग्री के तुलसी प्रज्ञा में प्रकाशन के लिए बधाई स्वीकार करें।" ---प्राप्त पत्रों से संकलित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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