Book Title: Tulsi Prajna 1996 04
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 144
________________ २५॥२. नामादि चउन्भेयं, वण्णेऊणं सुयाणुसारेणं । दुमपुप्फिय आओज्जा, चउसु पि कमेण भावेसु ॥ २६. अज्झप्पस्साणयणं, कम्माणं अवचओ उवचियाणं । अणुवचओ य नवाणं, तम्हा अज्झयणमिच्छति ।। २७. अधिगम्मति व अत्था, इमेण अधिगं च नयणमिच्छति । अधिगं च साहु गच्छति, तम्हा अज्झयणमिच्छति ।। २८. जह दीवा दीवसयं, पदिप्पए" सो य दिप्पती' दीवो। दीवसमा आयरिया, दिप्पंति परं च दीवेंति ।। २९. नाणस्स दंसणस्स य', चरणस्स य जेण आगमो होई। सो 'होइ भावआओ'", आओ लाभो त्ति निद्दिट्ठो ।। ३०. अट्ठविधं कम्मरयं, पोराणं जं खवेइ जोगेहिं । एयं भावज्झयणं, णायव्वं" आणुपुवीए॥ १. २५॥१,२ इन दोनों गाथाओं का चणियों में कोई उल्लेख नहीं है। केवल 'तत्थ उवक्कमो जहा आवस्सए' मात्र इतना ही उल्लेख है। ये गाथाएं विशेषावश्यक भाष्य (गा. ) की हैं। हस्तलिखित आदर्शों में ये गाथाएं मिलती हैं । किन्तु ये गाथाएं व्याख्या के प्रसंग में बाद में जोड़ी गई प्रतीत होती हैं अतः इन्हें निगा के क्रम में नहीं रखा है। टीकाकार हरिभद्र ने इनके लिए 'चाह नियुक्तिकार:' ऐसा उल्लेख किया है । २. उनि ६, अनुद्वा ६३१।१ । ३. य (जिच) ४. उनि ७। ५. पइप्पई (रा)। ६. दिप्पई (हा), दिप्पए (अ, रा)। ७. अनुद्वा ६४३।१, उनि ८, चंदा ३० । ८. वि (हा)। ९. होई (हा)। १०. होई भावाओ (अ)। ११. नेयव्वं (अ, हा)। १२. २६-३० तक की गाथाओं का अचू में कोई उल्लेख नहीं है। जिनदासचूणि में 'अज्झप्पस्साणयणं गाहाओ पंच भाणियव्वाओ' इतना उल्लेख है वहां १२वीं गोथा के बाद भी गा. २६, २७, २८ और ३० का संकेत दिया है तथा 'इमाओ निरुत्तिगाहाओ चउरो' इतना उल्लेख है। इससे स्पष्ट है कि जिनदास के समक्ष ये गाथाएं नियुक्तिगाथा के रूप में थीं। टीकाकार ने इन पांचों गाथाओं की व्याख्या की है तथा आदर्शों में भी ये गाथाएं मिलती हैं। इनमें कुछ गाथाएं अक्षरशः उत्तराध्ययन नियुक्ति में मिलती हैं। बण २२, अंक १ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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