Book Title: Tulsi Prajna 1994 10
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 12
________________ राउल राजदेव ने अपनी माता के धर्म (पुण्य) निमित्त एक विशोषक एवं दो पल्लिका तैल प्रदान किया । उन्होंने शासन की इस परम्परा को तोड़ने वाले को स्त्री हत्या और भ्रूण हत्या के पाप का दोषी बतलाया । उपर्युक्त दान की घोषणा महाजन सभा के सम्मुख की गई । सिरोही शिवगंज मार्ग पर स्थित वागसीण ग्राम के शांतिनाथ मंदिर लेख (वि० सं० १३५९) से भी रथयात्रा परम्परा की जानकारी मिलती है। विवेच्य अभिलेख से संकेतित है कि शांतिनाथ मन्दिर के यात्रा उत्सव हेतु (शांतिनाथ देवस्य यात्रा महोत्सव निमित्त) सोलंकियों ने सामूहिक रूप से खेत एवं ग्राम अर्पण किए तथा मन्दिर हेतु प्रति अरहर कुछ अनुदान की व्यवस्था की । १५ जैन रथयात्रा निकालने की परम्परा बाद में भी जारी रही। धूलेव के अर्हत् की प्रतिमा का जुलूस निकाला जाता था । रथयात्रा में जो लोग भाग लेते उनके वस्त्रों तथा आभूषणों पर जो धन खर्च किया जाता उसका पूरा लेखा-जोखा रखा जाता था ।" धर्मावलम्बियों द्वारा पुरालेखों के अनुसार उपर्युक्त विवरण के आधार पर कहा जा सकता है कि जैन धर्म में रथयात्रा उत्सव की परम्परा प्राचीनकाल से ही विद्यमान रही है । रथयात्रा उत्सव से समाज में सौहार्द एवं धार्मिक सहिष्णुता का वातावरण उत्पन्न हो जाया करता, जिससे शासकों को प्रशासन का संचालम करने में सुविधा होती थी । शासक प्रजा से सम्पर्क बनाए रखने हेतु स्वयं भी इस यात्रा उत्सव में सम्मिलित होते थे । डॉ० दशरथ शर्मा के अनुसार, “यात्रा उत्सव हिन्दू एवं जैन दोनों सम्प्रदायों में था । यह उत्सव सांप्रदायिक एकता का प्रतीक था ।" रथयात्रा जैन धर्म की ओर आकर्षित करने का सरल माध्यम था; इसीलिए जैन समाज वर्तमान समय में भी इस परम्परा को अपनाए हुए है । समान रूप से मनाया जाता उत्सव नागरिकों को संदर्भ १. वेदालंकार, सत्यकेतु; मौर्य साम्राज्य का इतिहास, पृ. ६६२-६६३ २. शर्मा, बी. एन; सोशल एण्ड कल्चरल हिस्टरी ऑव नोर्दन इण्डिया; सूरी जिन प्रभ; विविध तीर्थ कल्प पृ. १००-१०१; नेमीचन्द्र; आख्याङ्क मणिकोश ३५९, शर्मा, राजस्थान थ्रू द एजिज, पृ. ४७० ३. पांडेय, रा. ब, हिस्टोरिकल एण्ड लिटरेरी इन्स्क्रिप्शंस, पृ. १४५ ४. सोमदेव, यशस्तिलक चम्पू, कल्प १८, श्लोक २११ ५. जैन, के. सी; मालवा थ्रू द एजिज, पृ. ४९६ ६. शर्मा, दशरथ, अर्ली चौहान डाइनेस्टीज, पृ. २६५ आख्यात मणिकोश, १६ ७. इ. आई, xi, पृ. ५१; जैन, के० सी; एन्श्येण्ट सिटीज एण्ड टाउन्स ऑव राजस्थान, पृ. ५०९ ८. सत्य प्रकाश ; कुमारपाल चौलुक्य, प्र. १३५; सोमप्रभ कुमारपाल प्रतिबोध (सं. मुनि जिनविजय ) पृ. १७५, यशपाल, मोहराज पराजय (सं. सी. डी. दलाल) चतुर्थ अंक, १९, हेमचन्द्र, द्वयाश्रयमहाकाव्य XVI, ५०; मजूमदार, ए. के ; चालुक्याज ऑव गुजरात, पृ. ३२४ खण्ड २०, अंक ३ Jain Education International For Private & Personal Use Only १५५ www.jainelibrary.org

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