Book Title: Tulsi Prajna 1994 10
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 84
________________ क्षेत्र (Disciplinary oriented field) को समस्या केन्द्रित क्षेत्र (problems oriested field) में बदलें जिससे समस्या की गहराई तक जाया जा सके और उसका निदान सम्भव हो सके । समस्या के निदान के लिए शांतिशोध में साधन-शुद्धि पर सदैव ध्यान रखा जाएगा। “इसलिए शांतिशोध समाज, राष्ट्र और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर में योजनाबद्ध प्रयत्नों के द्वारा अहिंसक तरीके से सामाजिक परिवर्तन लाने के लक्ष्य का अनुसरण करता है।" __ गाल्लुंग ने अपने एक निबन्ध "A critical Definition of peace" में कहा है --"शांतिशोध उन शर्तों की दिशा में समझने का प्रयास है जो हमें अन्तर्राष्ट्रीय और अन्तर्सामूहिक हिंसा को रोकने में योगदान करता है तथा राष्ट्रों और जनता के बीच सामंजस्यपूर्ण तथा रचनात्मक सम्बन्धों के विकास में सहायक होता है।" अतः गाल्टुंग से अनुसार शांतिशोध का व्यापक रूप से दो वर्गों में विभाजन १. संघर्ष-शोध २. शांति के लिए पहल । उपर्युक्त दोनों क्षेत्रों से सम्बन्धित शोध शांतिशोध है । शांतिशोध के उद्देश्य शांतिशोध के उपर्युक्त विभाजन इसके उद्देश्यों को भी स्पष्ट करते हैं अर्थात् संघर्ष-शोध व शांति के लिए पहल इसका प्रमुख उद्देश्य हो सकता है । मुख्य रूप से यह कहा जा सकता है कि समाज में अशांति की जो स्थितियां है, संघर्ष या तनाव की जो स्थितियां है, उनके कारणों का पता लगाना तथा उनके निराकरण के उपाय सुझानायह शांतिशोध का प्रमुख उद्देश्य होगा। दूसरा महत्त्वपूर्ण उद्देश्य होगा--समाज का समग्र विकास करना क्योंकि सामाजिक असमानताएं हिंसा का कारण बनती हैं इसलिए सबका समग्र विकास इसका एक और मुख्य उद्देश्य हो सकता है । इनके अतिरिक्त निम्न बिन्दुओं के अन्तर्गत शांति-शोध के उद्देश्यों को खोज सकते हैं --- शांतिशोध का एक महत्त्वपूर्ण उद्देश्य है---अहिंसक व गरीबी-मुक्त समाज की रचना । यद्यपि कोई भी समाज ऐसा नहीं है जो केवल हिंसा या केवल अहिंसा पर चल सके । जीवन-निर्वाह के लिए हिंसा आवश्यक है पर समाज-रचना अहिंसा के आधार पर हुई है । एक दूसरे के हित में बाधा न डालने का समझौता सामाजिक जीवन का सुदृढ़ स्तम्भ है । पर आज के समाज में जो उच्च-निम्न के भेद है, जो संघर्ष है उन्हें मिटाना आवश्यक है । इसलिए शांतिशोध का उद्देश्य है कि एक ऐसे समाज की रचना करें जिसमें हिंसा का वर्चस्व न हो तथा सबका समान विकास हो सके। शस्त्रास्त्रों के भयावह खतरे के बावजूद शस्त्रीकरण की होड़ जारी है। पारस्परिक अविश्वास व शक्ति संतुलन का सिद्धांत इस समस्या को और अधिक गहरा बनाए हुए है। शांति स्थापना के लिए, आर्थिक कल्याण व पुननिर्माण के लिए, समस्याओं के शांतिपूर्ण समाधान के लिए तथा आणविक संकट व पर्यावरण प्रदूषण से बचने के लिए नि:शस्त्रीकरण की अपेक्षा है । शांतिशोध का उद्देश्य है कि शस्त्रीकरण खण्ड २०, अंक ३ २२७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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