Book Title: Tulsi Prajna 1994 10
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 110
________________ जिन वाणी के मोती सामान्य गृहस्थ के लिए आगम-साहित्य से संकलित बोधप्रद और मार्मिक सूक्तियों का संग्रह है जो मानव जीवन के लिए प्रेरणास्पद उपदेशों से भरापूरा होने से परम उपयोगी बन पड़ा है। सरल और हृदयस्पर्शी सूक्तियां सरल और प्रवाहमयी भाषा में अनुवादित होने से प्रत्येक जिज्ञासु पाठक के लिए सहज बोधगम्य हैं और दैनन्दिन जीवन में उत्साह एवं प्रेरणा देने वाली हैं। संग्रह के अन्त में गाथाओं की अनुक्रमणिका दी गई है और आरम्भ में भगवान् महावीर की जीवनी और उनके संदेश को दिया गया है, जो नित्य पाठ के लिए उपयोगी है । संग्रहकर्ता सामाजिक कार्यकर्ता हैं और निजी व्यवसाय में लगे हैं किन्तु उन्होंने 'गहरे पानी पैठने से मोती मिलते हैं' -इस कहावत को चरितार्थ कर स्वाध्याय के लिए जिनवाणी के मोती चुन दिए हैं। पुस्तक की साज-सज्जा, छपाई और प्रस्तुति कलापूर्ण है और सूक्तियों का अनुक्रम हितावह बन पड़ा है । यह आध्यात्म-पथिकों के लिए भी पाथेय सिद्ध होगा। ७. महामन्त्र णमोकार वैज्ञानिक अन्वेषण __ लेखक-डॉ० रवीन्द्र कुमार जैन, प्रकाशक-केलादेवी सुमति प्रसाद ट्रस्ट, बी-५/२६३, यमुना विहार, दिल्ली-५३, प्रथम संस्करण -- सन्-१९९३, मूल्य-५०/रुपये। केलादेवी सुमतिप्रसाद ट्रस्ट, दिल्ली ने अब तक क्रमशः आत्मा का वैभव, जैन गीता, छहठाला-अनुवाद, साइंटिफिक ट्रीटाइज ऑन ग्रेट नमोकार मन्त्र और णमोकार-वैज्ञानिक अन्वेषण -- पांच प्रकाशन किए हैं । अन्तिम दो कृतियां डॉ० रवीन्द्र कुमार जैन की हैं। श्री जैन तिरूपति और मद्रास विश्वविद्यालयों में अध्यापन करते रहे हैं। उन्होंने अपने पुरोवाक् में लिखा है-"प्रस्तुत कृति वस्तुतः मेरे सेवावकाश से लगभग २ वर्ष पूर्व मेरे मानस क्षितिज पर उभरी थी। मैंने पढ़ा, सोचा और अनुभव किया कि णमोकार मन्त्र अनन्त पारलौकिक, लौकिक एवं आध्यात्मिक शक्तियों का अक्षय भण्डार है, इस पर कुछ वैज्ञानिक दृष्टि से विचार करना अधिक समीचीन और श्रेयस्कर होगा !” इस प्रकार यह उपक्रम उनके परिपक्व मानस का अध्यात्म-प्रवेश उन्होंने लिखा है --- 'यह महामंत्र मूलतः अध्यात्मपरक है । पूर्ण नवकार मंत्र सिद्धि बोधक है और मूल पंचपदी मन्त्र अध्यात्म बोधक है।' उनका यह कथन भी संभवतः सन् १९८५ के नवंबर माह में, मद्रास में हुई अतिवृष्टि से संकट में फंसने और उनके द्वारा णमोकार मंत्र पाठ करने पर संकट मुक्ति से उपजी श्रद्धा-भक्ति से अनुप्राणित है। इसीलिए वे कहते हैं ---"वैज्ञानिक शब्द से मेरा आशय विज्ञानपरक न होकर अधिक मात्रा में क्रम बद्ध, तर्क-संगत एवं सप्रमाण होना रहा है"-अर्थात् वे 'ए साइंटिफिक ट्रीटाइज ऑन ग्रेट नमोकार मन्त्र' लिखकर भी अध्यात्मपरक वैज्ञानिकता को आत्मसात् नहीं कर सके हैं। फिर भी नमोकार-महामन्त्र के सम्बन्ध में किया गया उनका चिन्तन-अनुचिन्तन 'मार्गस्थो नावसीदति' के अनुसार उनके लिए तो कल्याण और अभयप्रद है ही श्रद्धालु खण्ड २०, अंक ३ २५३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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