Book Title: Tulsi Prajna 1994 10
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 102
________________ (iv) ३१५८ - 'आगतिगतिपरिण्णाय, दोहि वि अंतेहिं अदिस्समाणे । से ण छिज्जइ ण भिज्जइ ण डज्जइ ण हम्मइ कंचणं सव्वलोए । इस सूत्र का अपरार्द्ध गीता (२.२३, २४) में व्याख्यायित हुआ है - ___ "नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः । न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः ।। अच्छेद्योऽयमदाह्योऽयमक्लेद्योऽशोष्य एव च । नित्यः सर्वगतः स्थाणुरचलोऽयं सनातनः ॥" (v) ५॥१२३ 'सव्वे सरा णियति '--यह सूत्र तैत्तरीय-उपनिषद (२.२), कठोपनिषद् (२.३.१२), केनोपनिषद् (१.३) और मुण्डकोपनिषद् (३.३.२) में दोहराया गया है“यतो वाचो निवर्तन्ते, अप्राप्य मनसा सह" "नैव वाचा न मनसा प्राप्तुं शक्यो......।" "न तत्र चक्षुर्गच्छति न वाग् गच्छति नो मनः ......।" 'न चक्षुषा गृह्यते नापि वाचा........।" इसी प्रकार सूत्र (२.१८२ व ३.५५) पातंजलयोग दर्शन (४.३० व १.४७) में, सूत्र-४.५१ योग वाशिष्ठ (६.१.८७, ८८) में, सूत्र-५.१३६ ब्रह्मसूत्र (२.३.१८ व ३.२.१६) में तथा सूत्र-५.११८ सुश्रुत संहिता (शरीर स्थान ५.१०) में पुनर्व्याख्यायित हुए हैं । समाधि-शतक (श्लोक ७३) में आचारांग का सूत्र-८.१४ नयांतर से निरूपित हुआ है । ऐसे ही अनेकों सन्दर्भ हैं। ग्रन्थ के परिशिष्टों में विशिष्ट शब्दों के अर्थ और देशी शब्दों की पहचान दी गई है-आराम-आत्म रमण, आस=भोगाभिलाषा, ओह-प्रवाह, संखडि=जीमनवार, अहोविहार=संयम, ओववाइय=पुर्नजन्म लेने वाले, पंत-वासी भोजन, बक्कस सत्तू या चने का भोजन, लूहदेसिय-रूक्ष भोजन, समय-सांकेतिक कथा, साला भीत रहित आवास आदि विशेषार्थक शब्द और गेहि-कामासक्ति, चाइ-सहन करना, चिठेंगाढ़ा, गहरा, संघड-नित्य, सतत, हुरत्या-अप्राप्त, बाह्य आदि देशी शब्दों का भावार्थ खोला गया है । धातुपद, संधान पद और सुभाषितों का संग्रह, टिप्पणियों में उल्लिखित विशेष विवरण और चूणि तथा वृत्ति में उद्धृत श्लोकों का भी संकलन कर दिया गया है। सर्वांश में यह उपक्रम अनूठा बन पड़ा है । २३४ २९ से० मी० के बृहद् आकार में ६०० पृष्ठों का यह प्रकाशन ३००/- रुपये में प्राप्य है । गेटअप, छपाई, साज-सज्जा मनोहारी है। ___इस प्रकार जैन विश्वभारती संस्थान, लाडनूं का यह प्रकाशन उसकी आगम-प्रकाशन माला का सुमेरू बन गया है। खड २०, अंक ३ २४५ For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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