Book Title: Tulsi Prajna 1994 10
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 63
________________ इस प्रकार हमने देखा कि एक ही देवी अपनी लीला से अनेक रूपों में प्रकट हुई है। उसकी महिमा अपार है । इसी देवी ने हर युग में मानव-कल्याणार्थ अवतार लिया है। शक्ति के बिना शक्तिमान् का अस्तित्व ही सम्भव नहीं हो सकता है। निर्गुण ब्रह्म भी माया से अविच्छिन्न होकर, प्रपञ्च की सृष्टि में अपना सामर्थ्य स्थापित करता है। भारतीय संस्कृति में शक्ति को अभ्यहित माना गया है। सर्वत्र शक्ति का उच्चारण पहले और शक्तिमान का उच्चारण बाद में किया गया है। राधाकृष्ण, सीताराम इत्यादि पद-परिपाटियों से इस मन्तव्य की पुष्टि हो जाती है। संदर्भ 1. The prakriti is also called Maya which is responsible for extending her power over the whole universe. Shiva Purana-Apoitic analysisp-12 २. प्रधानमिति यामाहुयां शक्तिरिति कथ्यते (पटल-११६) ३. तस्या एव ब्रह्मा आजीजनत् । विष्णुरजीजनत्, रुद्रोऽजीजनत्, सर्वे मरुद्गणा अजीजनत् । ग्रन्धर्वाप्सरसः किन्नरावादित्रवादिनः समान्तादजीजनत् । भोग्यमजीजनत् सर्वमजीजनत् । सर्वे शक्तिमजीजनत् अण्डजं स्वदेजमुद्धिज्जं जरायुजं यत्किचित्प्राणिस्थावरजंगमं मनुष्यमजीजमत् सेवा पराशक्तिः (ब्रहृवचोपनिषद्) । ४. योगनिद्रां यदा विष्णुर्जगत्येकार्णवीकृते । आस्तीर्य शेषमभजत्कल्पांते भगवान्प्रभुः । x त्वं स्वाहा त्वं स्वधा स्वं हि वषट्कार स्वरात्मिका । सुधा त्वमक्षरे नित्ये त्रिधामात्रात्मिका स्थिता। अर्धमात्रा स्थिता नित्या यानुच्चार्याविशेषतः । त्वमेव सन्ध्या सावित्री त्वं देवि जननीपरा । -मार्कण्डेय पुराण-७८-४९, ५४-५५ ५. त्वयैतद्वार्यते विश्वं त्वयैतत्सृज्यते जगत् । त्वयैतत्पाल्यते देवि त्वमत्स्यते च सर्वदा ।। विसृष्टी सृष्टिरूपा त्वं स्थितिरूपा च पालने । तथा संहृतिरूपांते जगतोऽस्य जगन्मये॥ --मा० पु० ७८.५६-५७ ६. देवीभागवत, ७।५२।२-३ ७. देवीमाहात्म्य, २०१३ ८. मार्कण्डेयपुराण, ७८१६६-६९ ९. वैकृतिक रहस्य, १-२ १०. श्रीमद्देवीभागवत पुराण, ११९।४०-५६ ११. दुर्गासप्तशती वैकृतिकरहस्यम्, ७ १२. मार्कण्डेय पुराण-७९.१३-१७ तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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