Book Title: Tulsi Prajna 1994 10
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 75
________________ शब्द समानार्थक रूप में प्रयुक्त हुए हैं। वैसी कथा को, जिसमें किसी मुख्य पात्र अतीत जीवन चरित से सम्बन्धित विभिन्न तथ्यों का यथारूप विवरण दिया गया हो, उसे आख्यान कहेंगे । इसमें धर्म, ज्ञान, भक्ति कर्म, पाप-पुण्य, शाप-वरदान, युद्ध, दान, यज्ञ आदि विस्तृत विवेचन होता है। भागवत में एक स्थल पर स्वयं भागवत महापुराण को 'महदाख्यान' कहा गया है, जिसमें भक्तों के परमलक्ष्य भगवान् विष्णु किंवा श्रीकृष्ण के गुणों का विस्तृत विवेचन है : हरेर्गुणाक्षिप्तमतिर्भगवान् बादरायणिः । अध्यगान्महदाख्यानं नित्यं विष्णु जनप्रियः ॥ इस प्रकार पुराण, इतिहास, पुरावृत्त, चरित, कथा, कथांश, पुरानी कहानी आदि अर्थों में आख्यान शब्द का प्रयोग किया गया है। सामान्यतया कथा, कथानक, आख्यान-वृतान्त आदि का आख्यान में ही समाहरण हो जाता है। आख्यान का अभिधेय ऐतिहासिक कथानक ही होता है। आख्यान और उपाख्यान सामान्यतः दोनों एक ही अर्थ के वाचक परिलक्षित होते हैं, लेकिन इनमें किञ्चिदन्तर अवश्य दृष्टिगोचर होता है। छोटे कयांश को उपाख्यान एवं वृहद् कथा को भाख्यान कहते हैं। श्रीधराचार्य ने आख्यान और उपाख्यान के परस्पर वैलक्षण्य को इस प्रकार प्रकट किया है--- स्वयं दृष्टार्थकथनं प्रादुराख्यानकं बुधाः । श्रुतस्मार्थस्य कथनमुपाख्यानं प्रचक्षते ॥" अर्थात् स्वयमेव वक्ता के द्वारा प्रत्यक्ष कृत घटनात्मक कथन को आख्यान एवं किसी के द्वारा सुनकर प्रवाचित प्रवचन को उपाख्यान कहते हैं। विष्णुपुराण में आख्यान और उपाख्यान को पुराण का एक तत्त्व माना गया है।" वर्गीकरण श्रीमद्भागवतकार ने अनेक स्थलों पर ज्ञान, भक्ति, वैराग्यादि को सम्पुष्ट करने के लिए विभिन्न आख्यानों को उपस्थित किया है। श्लोक, अध्याय, पात्र, कथावस्तु के स्रोत एवं प्रतिपाद्यादि के आधार पर इन भागवतीय आख्यानों के अनेक भेद किए जा सकते हैं। . (i) सर्वप्रथम श्लोकों के आधार पर आख्यान को छः वर्गों में रखा गया है :(क) प्रथम वर्ग - इस वर्ग में वैसे आख्यानों को सम्मिलित किया गया है जो मात्र एक श्लोक में किसी अन्य कथा प्रसंग में उल्लिखित किए गए हैं। यथा-जह्न, आख्यान, शिवि आख्यान एवं नहुष आख्यान आदि । (ब) द्वितीय वर्ग इस वर्ग में वैसे आख्यानों को रखा गया है जो दो से लेकर १० श्लोक तक निबद्ध हैं। ऐसे १८ आख्यान हैं-कच्छप, कर्ण, कल्कि, खट्रांगजनक, जनमेजय, गय, धन्वन्तरि, अश्वत्थामा, द्रोण, राहु-केतु, हंस, हयग्रीव, नर-नारायण, निषाद, तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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