Book Title: Tulsi Prajna 1994 10
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 68
________________ चर्चा की। सारांश में कुछ विद्वान् जिनेन्द्र देव की सर्वज्ञता को लेकर यह सिद्ध करते हैं कि अकाल मरण नाम की कोई बात ही नहीं होती। हम जिसे अकाल-मरण समझते हैं वह वस्तुतः सकाल मरण है क्योंकि जिनेन्द्र भगवान् को उस घटना के बारे में पहले से ही पता है कि वह घटना अमुक समय पर घटनी है। दूसरी ओर विद्वानों का कहना है कि जिनेन्द्र भगवान् की सर्वज्ञता के आधार पर अकाल मरण का खण्डन करने से एकांत मिथ्यात्व का दोष लगता है, क्योंकि जिनेन्द्र भगवान् ने ही दो परस्पर विरोधी नयों, काल नय तथा अकाल नय और नियति नय तथा अनियति नय की बात कही है । अत: कालमरण काल व्यवस्थित भी है तथा काल व्यवस्थित नहीं भी है । यही अनेकांत है जो कि जैन धर्म का मूल सिद्धांत है । इस प्रकार यह एक बहुत ही उलझी हुई समस्या है । इसके समाधान के लिए हम विज्ञान का सहारा लेना चाहेंगे । विज्ञान जिस बात को प्रयोग द्वारा सिद्ध कर देता है, उसे वह सत्य मानता है। जिस बात को प्रत्यक्ष रूप से जाना जा सके, उसे हमको भी स्वीकार करने में कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। पहले मैं विज्ञान की अलग-अलग विधाओं-आहार एवं स्वास्थ्य विज्ञान, भौतिक विज्ञान तथा जीव विज्ञान के आधार पर यह चर्चा करना चाहूंगा कि क्या किसी जीव या व्यक्ति की आयु/उम्र बढ़ भी सकती है ? यदि उम्र बढ़ सकती है तो उम्र घट भी सकती है । अतः अकाल मरण स्वतः ही सिद्ध हो जायेगा। आहार एवं स्वास्थ्य विज्ञान हमारे खान-पान का स्वास्थ्य पर सीधा असर पड़ता है। यह एक आम धारणा है कि जो व्यक्ति नित्य-प्रति व्यायाम करता है तथा सात्विक भोजन करता है तथा अपने स्वास्थ्य के प्रति सजग रहता है उसकी आयु औसत से कहीं अधिक होती है । इसके विपरीत जो व्यक्ति अपने खान-पान का विशेष ध्यान नहीं रखते तथा जो बीमार रहते हैं उनकी आयु औसत से कम ही होती है । जापान तथा रूस में अनेकों ऐसे व्यक्ति मौजूद हैं जिनकी आयु सौ वर्ष के लगभग या उससे अधिक है । ये लोग शाकाहार लेना पसन्द करते हैं, पहाड़ों पर खुली हवा में रहते हैं तथा सामान्यत: प्राकृतिक चिकित्सा पर ही निर्भर रहते हैं। यहां के लोगों की आम धारणा भी वही है कि जो लोग जंगलों/खेतों/पहाड़ों पर रहना पसन्द करते हैं तथा जो शाकाहारी हैं उनकी आयु सौ वर्ष के आसपास तो होती ही है। ___ यहां मेरा कहने का तात्पर्य यह है कि खान-पान ठीक होने से स्वास्थ्य भी ठीक रहता है तथा व्यक्ति अपनी पूरी आयु जीता है। अन्यथा वह अपनी पूरी आयु नहीं जी पाता है। इससे तो यही सिद्ध होता है कि खान-पान सही रखने से भी आयु औसत से बढ़ सकती है। अतः आहार एवं स्वास्थ्य विज्ञान की दृष्टि से व्यक्ति औसत से अधिक आयु पा सकता है और यदि विषपान करे तो अपनी आयु पूरी करने से पहले भी मर सकता भौतिक विज्ञान महान् वैज्ञानिक आइन्सटीन ने 'सापेक्षवाद का सिद्धांत' प्रस्तुत किया। इस खण्ड २०, अंक ३ २११ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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