Book Title: Tulsi Prajna 1994 10
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 37
________________ प्रसन्नता होगी । गणाधिपति ने आचार्य महाप्रज्ञ उस समय ( मुनिश्री नथमल ) को संकेत किया। उन्होंने सामान्य बोलचाल की भाषा की तरह प्राकृत में वक्तव्य देकर सबको विस्मय में डाल दिया। डॉ० नोर्मन ब्राउन बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने कहाभगवान् महावीर की ढाई हजार वर्ष प्राचीन भाषा में प्रवचन सुनकर मेरी वर्षों की इच्छा पूरी हुई है । इस प्रकार तेरापंथ धर्मसंघ में प्राकृत निरन्तर मिलता रहा है। को फलने-फूलने का अवसर आगम- सम्पादन भगवान् महावीर की वाणी आगम बन गई। उनके प्रधान शिष्य गौतम आदि ग्यारह गणधरों ने उसे सूत्र रूप में गूंथा । आगम के दो विभाग हो गए - सूत्रागम और अर्थागम । पहले आगम लिखने की परम्परा नहीं थी । सारा वाङ्मय स्मृति पर आधारित था । वीर निर्वाण की दूसरी शताब्दी में पाटलिपुत्र में बारह वर्षों के दुर्भिक्ष आदि कारणों से श्रमण संघ छिन्न-भिन्न होने लगा । अनेक बहुश्रुत मुनि अनशन कर स्वर्गवासी हो गए । आगमज्ञान की शृंखला टूट सी गई । दुर्भिक्ष समाप्त होने पर पुनः संघ मिला । आगमों का संकलन किया गया । बारहवें अंग दृष्टिवाद का ज्ञाता भद्रबाहु के अतिरिक्त कोई नहीं था। संघ की प्रार्थना पर उन्होंने बारहवें अंग की वाचना देना स्वीकार किया । स्थूलभद्र को दस पूर्व तक वाचना दी गई। बहिनों को चमत्कार दिखाने के कारण उनको आगे वाचना देना बन्द कर दिया गया। फिर बहुत आग्रह से चार पूर्व की वाचना तो दी पर अर्थ नहीं बताया । इस कारण पाठ की दृष्टि से स्थूलभद्र अन्तिम श्रुतकेवली हुए । भद्रबाहु के पश्चात् अर्थ की दृष्टि से दस पूर्व का ज्ञान शेष रहा। यहीं से आगम विच्छेद का क्रम शुरू हो गया । व्रजस्वामी के उत्तराधिकारी आर्यरक्षित हुए। वे नौ पूर्व पूर्ण और दसवें पूर्व के २४ यविक जानते थे । आर्य रक्षित के शिष्य दुर्बलिका पुष्यमित्र ने नौ पूर्वो का अध्ययन किया किन्तु अभ्यास के बिना वे नौवें पूर्व को भूल गए। इस प्रकार विस्मृति का क्रम आगे बढ़ता गया । •--- आगम- संकलन का दूसरा प्रयत्न वीर निर्वाण ८२७ और ८४० के बीच हुआ । आचार्य स्कन्दिल के नेतृत्व में आगम लिखे गए। यह कार्य मथुरा में हुआ इसलिए इसे माथुरी-वाचना कहा जाता है । इसी समय वल्लभी में आचार्य नागार्जुन के नेतृत्व में आगम संकलित हुए। उसे वल्लभी - वाचना या नागार्जुनीय वाचना कहा जाता है । आगम-वाचना और संकलन का तीसरा प्रयत्न वीर - निर्वाण के लगभग एक हजार वर्ष पश्चात् देवर्द्धिगणी क्षमाश्रमण के नेतृत्व में श्रमण संघ मिला । उस समय भी द्वादश वर्षीय दुर्भिक्ष के कारण बहुत सारे बहुश्रुत मुनि काल कवलित हो गए थे । अन्य मुनियों की संख्या भी बहुत कम थी । इस कारण श्रुत की स्थिति चिन्तनीय थी । क्रमशः उसकी विस्मृति हो रही थी । देवद्धिगणी ने अवशिष्ट बहुश्रुत मुनियों तथा श्रमण संघ को एकत्रित किया। उन्हें जो श्रुत कंठस्थ था उसे सुनकर लिपिबद्ध किया गया । आगमों के अनेकों आलापक न्यूनाधिक और छिन्न-भिन्न मिले। उन्होंने १५० तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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