Book Title: Tritirthi
Author(s): Rina Jain
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 12
________________ कार्य माना जाता था। निशीथचूर्णि के अनुसार यात्रा करने से व्यक्ति की श्रद्धा पुष्ट होती है। यात्राओं के वर्णन ईसा की छठी सदी से मिलना प्रारम्भ होते हैं। तीर्थयात्रा से अध्यात्मिक मूल्यवत्ता के साथ-साथ व्यावहारिक उपादेयता भी है। सहसंघ यात्राएँ करवाने वालों को हृदय से अनुमोदन करना चाहिए। सर्वाधिक लोकप्रिय व महत्त्वपूर्ण तीर्थों में से तीन तीर्थों संबंधी उपलब्ध सामग्री में से रोचक व प्रेरणास्पद सामग्री का चयन कर यह पुस्तक तैयार की गई है। साथ ही यात्रियों की सुविधा हेतु साधना पद्धति व विधि-विधान भी संक्षेप में दिया गया है। आचार्य धनेश्वरसूरि, डॉ. शिवप्रसाद, आचार्य गुणरत्नसूरीश्वरजी, अगरचन्द-भंवरलाल नाहटा, साध्वी चन्द्रप्रभाश्रीजी, सुरेन्द्र बोथरा आदि का भी मैं आभार व्यक्त करती हूँ, जिनके द्वारा लिखित एवं अनुवादित सामग्री का सहयोग मिला तथा उसी के द्वारा इस पुस्तक का उपयोगी संकलन संभव हो सका। आशा है इससे तीर्थयात्री ही नहीं सामान्य पाठक भी लाभान्वित होंगे। - रीना जैन प्रस्तावना

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