Book Title: Tritirthi
Author(s): Rina Jain
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 110
________________ तीर्थ का ऐतिहासिक वर्णन शंखेश्वर एक अति प्राचीन तीर्थ है। यह गुजरात के महसाणा जिले में स्थित है। महसाणा से ६० किलोमीटर की दूरी पर शंखेश्वर नामक स्थान है। भगवान श्री पार्श्वनाथ की सबसे प्राचीनतम प्रतिमा शंखेश्वर में है। शंखेश्वर पार्श्वनाथ की प्रतिमा को करोड़ों देवताओं और मनुष्यों द्वारा पूजा गया तथा उन्हें इच्छित सिद्धियाँ एवं फल प्राप्त हुए। श्वेतवर्ण की यह महामनोहर प्रतिमाजी सभी प्रतिमाओं में प्राचीन जिनबिंब है। कलात्मक परिकर से जिनबिंब की मोहकता आँखों से प्रभुदर्शन से हटने नहीं देती है। इस मूर्ति पर सात मनोहर फण अलंकृत हैं जो मूर्ति को लावण्यमयी बनाते हैं। प्रतिमा का अनुपम रूप हृदय में भक्ति की लहरें उत्पन्न करता है। ७१ इंच की विराटकाय प्रतिमाजी का दर्शन विकारों को दूर करता हैं। अंतर में प्रकाश फैलाता है। पद्मासन में विराजित पार्श्वप्रभु के दर्शन कर भक्त का चित्त प्रसन्न हो जाता है। ___प्राचीन ऐतिहासिक संदर्भो के अनुसार पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमा करोड़ों वर्ष पुरानी है। गत चौवीसी के नवें तीर्थंकर श्री दामोदर स्वामी की देशना के समय आषाढी नामके श्रावक ने स्वामी से पूछाहे भगवन! मेरी मुक्ति कैसे होगी? क्या तीर्थंकर परमात्मा के काल में मुझे मुक्ति प्राप्त होगी? तब दामोदर स्वामी ने कहा- हे आषाढ़ी श्रावक! तेरी मुक्ति आवती (अनागत) चौवीसी के तेवीसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ की आराधना करने से होगी। उस समय तुम आर्यघोष नामक गणधर बनकर मुक्ति प्राप्त करोगे। अतः अभी बहुत समय है। किन्तु, श्रावक के हृदय ने शङ्केश्वर तीर्थ

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