Book Title: Tritirthi
Author(s): Rina Jain
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 120
________________ इस जिनालय में वि.सं. १६५२ से १६९८ तक के लेख प्राप्त हुए हैं, जो ध्वस्त देहरीओं, उनके बारशाखों आदि पर उत्कीर्ण है। इनकी कुल संख्या ३५ हैं, जिसमें से २८ लेखों में कालनिर्देश है, शेष लेख मितिविहीन हैं। यहाँ स्थित नवीन जिनालय के मुख्यद्वार के बाहर बाँयीं ओर वि.सं. १८६८ भाद्रपद सुदी १० बुधवार का एक लेख उत्कीर्ण है। बर्जेस ने इस लेख के आधार पर यह मत व्यक्त किया है कि यह जिनालय उक्त तिथि में निर्मित हुआ है। परन्तु उनका यह मत भ्रामक है। वस्तुतः इस लेख में उक्त जिनालय को दिये गये दान एवं उसके व्यय के प्रबन्ध सम्बन्धी विवरण है। मुनि जयन्तविजय का यह मत उचित ही प्रतीत होता है कि इस जिनालय के निर्माता, प्रतिष्ठापक आचार्य, प्रतिष्ठा तिथी आदि के संबंध में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है। नवीन जिनालय में प्रतिष्ठित प्रतिमाओं, परिकरों, देहरीओं आदि पर वि.सं. १२१४ से वि.सं. १९१६ तक के लेख उत्कीर्ण है। इनमें से २१ लेखों में कालनिर्देश है, शेष ३ लेख मितिविहीन है। __जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ वर्तमान के सबसे अधिक स्मरणीय तीर्थंकर हैं। भगवान पार्श्वनाथ के सबसे अधिक तीर्थ हैं, सबसे अधिक जिनालय हैं। भगवान पार्श्वनाथ का नाम स्मरण करते ही विद्युत स्पर्श की भांति तुरंत चमत्कारी प्रभाव महसूस होता है। शास्त्रों में भगवान पार्श्वनाथ के जीवन में जो गुण दिखाई देते हैं वैसे तो वे सब तीर्थंकर भगवान में हैं; परंतु प्रभु पार्श्वनाथ में दूसरों के दु:ख को देखकर द्रवित होने की दयालुता और उनका उद्धार करने की भावना व आत्मीयता है। ___ शास्त्रों में वर्णन के अनुसार भगवान पार्श्वनाथ ने अपने युग में 216 ऐसी वृद्ध कुमारिकाएं, जो बिना विवाह किए ही वृद्ध हो गईं, जो समाज में उपेक्षित व अपमान की पीड़ा से दु:खी थीं, उनको तप-संयम के श्रेष्ठ साधना मार्ग में प्रवृत्त कर अतीव सन्मान योग्य स्थान प्रदान किया, यह उन शङ्केश्वर तीर्थ 105

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