Book Title: Tritirthi
Author(s): Rina Jain
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 39
________________ होकर रहने से पाप कर्म का क्षय करके तू रोग से मुक्त होगा। जैसे गाढ तपश्चर्या के प्रभाव से वज्रलेप हुए पापकर्मों से प्राणी मुक्त होता है वैसे ही पुंडरीक गिरिराज की भावपूर्वक सेवा से भी आत्मा पाप कर्मों से मुक्त होती है। इस तीर्थ के महात्म्य से वहाँ रहने वाले तिर्यंच भी प्रायः पापमुक्त और निर्मल हृदय वाले होकर अच्छी गति प्राप्त करते हैं। इस गिरिराज के स्मरण से सिंह, अग्नि, समुद्र, सर्प, राजा, विष, युद्ध, चोर, शत्रु और महामारी के भय भी नाश पाते हैं। उग्र तप और ब्रह्मचर्य से जो पुण्य होते हैं वे शतुंजयगिरि की निश्रा में विवेकपूर्वक यतना से रहने वाले को प्राप्त होते हैं। श्री विमलाचल के पुण्य दर्शन से इन तीनों लोकों में जो कोई भी तीर्थ हैं उन सबों के दर्शन हो जाते हैं।' । इस प्रकार सुव्रत मुनि के मुख से तीर्थ महिमा सुनकर वह ब्राह्मण पुंडरीक गिरिराज की यात्रा को गया। वहाँ मुनि के कथनानुसार व्यवहार करने से अनुक्रम से वह रोग रहित हो गया। अंत में विशेष वैराग्य से अनशन व्रत द्वारा मृत्यु प्राप्त कर, उस ब्राह्मण का जीव अद्भुत कांति धारण करने वाला यह अनंत नाम का नागकुमार देव बना है, और तीर्थ सेवा के प्रभाव से इस भव से तीसरे भव में यह देव कर्मों का क्षय करके अनंत चतुष्टय प्राप्त कर मुक्ति सुख प्राप्त करेगा। यह सुनकर वह अनंत नागकुमार देव शQजय गिरि पर गया और वहाँ अष्टान्हिका महोत्सव करके भक्तिपूर्वक तीर्थ का स्मरण करता हुआ वह देव अपने स्थान को गया। अहो! इन तीनों भुवन में शतुंजय जैसा कोई उत्तम तीर्थ नहीं है, कि जिसके स्पर्श मात्र से विपत्तियां दूर चली जाती हैं। २. त्रिविक्रमराजा की कथा इस भरत क्षेत्र में श्रावस्ती नगरी में त्रिशंकु का पुत्र त्रिविक्रम नाम का एक राजा था। वह एक बार उद्यान में जाते हुए मार्ग में रहे वटवृक्ष त्रितीर्थी

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