Book Title: Tritirthi
Author(s): Rina Jain
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 74
________________ 9. गिरनार महातीर्थ तथा नेमिनाथ भगवान के प्रति अत्यंत राग के प्रभाव से, धामणउल्ली गाँव के धार नामक व्यापारी के, पाँच पुत्र 1) कालमेघ, 2) मेघनाद, 3) भैरव, 4) एकपद और 5) त्रैलोक्यपद ये पाँचों पुत्र मरकर तीर्थ में क्षेत्राधिपति देव बने। 10. स्वर्गलोक, पाताललोक और मृत्युलोक के चैत्यों में सुर, असुर और राजा गिरनार पर्वत के आकार को हमेशा पूजते है। 11. गिरनार महातीर्थ में विश्व की सब से प्राचीन मूलनायक रूप में विराजमान श्री नेमिनाथ भगवान की मूर्ति लगभग 1,65,735 वर्ष न्यून (कम) ऐसे 20 कोडाकोडी सागरोपम वर्ष प्राचीन है। जो गत चौबीशी के तीसरे तीर्थंकर श्री सागर भगवान के काल में ब्रह्मेन्द्र द्वारा बनाई गई थी। इस प्रतिमाजी को प्रतिष्ठित किये लगभग 84,785 वर्ष हुए हैं। मूर्ति इसी स्थान पर आगे लगभग 18,435 वर्ष तक पूजी जायेगी। उसके बाद शासन अधिष्ठायिका देवी द्वारा इस प्रतिमाजी को पाताललोक में ले जाकर पूजी जायेगी। 12. गिरनार पर इंद्र महाराजा ने वज्र से छिद्र करके सोने के बलानक झरोखेवाले चाँदी के चैत्य बनाकर, मध्यभाग में श्री नेमिनाथ परमात्मा की चालीस हाथ ऊँचाई वाली श्यामवर्ण रत्न की मूर्ति स्थापित की थी। 13. इंद्र महाराजा ने जैसा पहले बनाया था, वैसा पूर्वाभिमुख जिनालय श्री नेमिनाथ भगवान के निर्वाण स्थान पर भी बनाया था। 14. गिरनार में एक समय में कल्याण के कारणस्वरुप छत्रशिला, अक्षरशिला, घंटाशिला, अंजनशिला, ज्ञानशिला, बिन्दुशिला और सिद्धशिला आदि शिलाएँ शोभित थीं। 15. गिरनार महातीर्थ में निवास करने वाले तिर्यचों (जानवर) को भी आठ भव के अंदर सिद्धिपद प्राप्त होता है। गिरनार तीर्थ 59

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