Book Title: Tritirthi
Author(s): Rina Jain
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 94
________________ वैशाख सुद 7 शनिवार के दिन आ . जिनेन्द्रसूरि महाराज साहेब ने करवायी थी। इस जिनालय के उत्तर दिशा की तरफ के प्रांगण में एक देड़की नामक बावड़ी है। खिडकी से बाहर निकलने पर भीमकुंड आता है। भीमकुंड : यह कुंड बहुत विशाल है। यह लगभग 70 फुट लंबा और 50 फुट चौडा है । यह कुंड 15 वीं शताब्दी में बना हो, ऐसा लगता है। सख्त गर्मी में भी इस कुंड का जल शीतल रहता है। इस कुंड की एक दीवार के एक पाषाण में श्री जिनप्रतिमा तथा हाथ जोडकर खड़े हुए श्रावक श्राविकाओं की प्रतिमा खोदी हुई दिखाई देती है। कुंड के किनारे से आगे बढने पर नीचे उतरने के लिए सीढियाँ आती है । बायें हाथ की दीवार के झरोखे में श्री नेमिनाथ भगवान की तथा दायें हाथ के झरोखे में अंबिका देवी की प्रतिमा बिराजमान है । वहाँ से आगे चलने पर श्री चन्द्रप्रभस्वामी का जिनालय आता है। 1 (5) श्री चन्द्रप्रभस्वामी का जिनालय : श्री चन्द्रप्रभस्वामी भगवान श्री चन्द्रप्रभस्वामी का यह जिनालय एकांत मे आया है। इस जिनालय में श्री चन्द्रप्रभस्वामी भगवान की प्रतिमा की प्रतिष्ठा वि.सं. 1701 में हुई । उस जिनालय की उत्तरदिशा से 30-35 सीढियाँ नीचे उतरने पर गजपद कुंड आता है । गजपद कुंड : श्री शत्रुंजय तीर्थ की स्पर्शना करने, श्री रैवतगिरि को नमस्कार करके, गजपद कुंड में स्नान करनेवाले को पुनः जन्म नहीं लेना पड़ता है, ऐसी मान्यता है इस कुंड की । यह गजपद कुंड 'गजेन्द्रपद कुंड' तथा 'हाथी पादुका कुंड' के नाम से भी जाना जाता है। इस कुंड के एक स्तम्भ में जिनप्रतिमा खोदी हुई है। श्री शंत्रुजय माहात्म्य के अनुसार जब श्री भरतचक्रवर्ती और गणधर भगवंत आदि प्रतिष्ठा के लिए गिरनार आये, तब श्री नेमिनाथ प्रासाद की प्रतिष्ठा के लिए इन्द्र महाराज गिरनार तीर्थ 79

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