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गाथा:१
लोकसामान्याधिकार गाथा :--जिनके चरण सम्बन्धी नखों की किरणें बलदेव और नारायण की चूड़ामरिण की किरणों के समूह से लाल हो रही हैं, तथा जो तीनलोक सम्बन्धी भव्यजीवों को दानन्दित करने के लिये चन्द्रमा स्वरूप हैं ऐसे अत्यन्त निमंल श्री नेमिचन्द्र-नेमिनाघनामक बाईसवें तीर्थरूर को मैं श्रीनेमि वात्राय माता हूँ !: 11
विशेषाय :-यहाँ संस्कृत टीकाकार श्री माधवचन्द्र आचार्य ने भगवान् नेमिनाथ के विमलतर विशेषण की व्याख्या करते हुए कहा है कि द्रव्य और भावरूप मल अथवा शरीर मम्बन्धी धातु उपधातुरूप मल नष्ट हो जाने से जो विमल कहलाते हैं और स्वयं विशुद्धि को परम सीमा को प्राप्त हो अपने आश्रित रहने वाले जीवों के कमल का प्रक्षालन करने के कारण जो घिमलतर कहलाते हैं, एसे विमलसर अर्थात् अस्यन्त निर्मल बाईम सीथंकर को मैं नमस्कार करता हूँ। इम विमलतर विशेषण से यह मूचित होता है कि वे अपाय-अतिशय अर्थात् बाधक कारणों से रहित हैं। वे बाईसवें तीर्थङ्कर त्रिभुवनचन्द्र है अर्थात् तीन लोक का स्वरूप प्रगट करने के लिये चन्द्रमा के समान प्रकाशमान हैं। अथवा त्रिलोकवर्ती जीवों को हितकारन उपदेश देने से चन्द्रमा के सदृश आल्हाददायी हैं। इस विशेषण से ग्रन्थकर्ता ने उनके बबनरूप अतिशय अथवा प्राप्ति-अतिशय का वर्णन किया है। चलगोविन्द आदि विशेषग से यह सूचित किया है कि उन्हें बलभद्र और नारायण पद के धारक बलदेव और श्रीकृष्ण सदा मस्तक से प्रणाम करते थे तथा प्रणाम करते समय उनके मस्तक पर स्थित पद्मरागमणि की लाल लाल किरणों से उन भगवान के चरण नख लाल लाल हो जाते थे। इस तरह वे पूजातिगय से सम्पन्न थे। इस सन्दर्भ में जिनेन्द्र भगवान के अतिशयों का वर्णन करते हुए कहा है--
'अपायप्राप्तिवाक्पूजाविहारास्थायिका ननु
प्रवृत्तय इति ख्याता जिनस्यातिशया इमे ।।' अर्थात् अपाय, प्राप्ति, वचन, पूजा, विहार, समवशरण मभा और शरीर की निर्दोष प्रवृत्ति ये अरहन्त भगवान् के अनिशय कहे गये हैं । टीकाकार ने 'विमलसर नेमिचंद का एक अर्थ यह भी प्रगट किया है कि भगवान् जिनेन्द्र धर्मरूपी रथ के प्रश्न क होने से 'नेमि' ( चक्र की धारा हैं और भव्य जीवों के नेत्र और मन को आहादिन करने से 'चन्द्र' है. तथा मल से रहित होने के कारण विमलता हैं। इस तरह "विमलनर नमिचन्द्र' दाबद का अर्थ अत्यन्त निर्मल तीर्थकररूपी चन्द्रमा हाता है । अथवा 'यथास्थितमर्थ नयनि परिस्छिन नि इति नेमिः' इम व्युत्पत्ति के अनुसार नेमि का अर्थ ज्ञान होता है और विमलनर शब्द का अर्थ अत्यन्त निमल है "विमलत रश्चासो ने मिश्च' इस कमंधारय ममास से 'विमलतर नेमि' का अर्थ अत्यन्त निर्मल केवलज्ञान होना है और तेनोपलक्षितः चन्द्रो विमलतर नेमिचन्द्रः' इस समास के द्वारा पूर्ण पद का अर्थ अत्यन्त निर्मल केवलजान से सहित आलाददायक होता है । अथवा 'बिमलन रा रत्नत्रयपवित्रात्मानः, ते एव नेमयो नक्षत्राणि तेषां चन्द्र इव चन्द्रः स्वामी तम्' इन ममास के द्वारा विमलतर चन्द्र का अर्थ अन्तिम तीर्थकर अथवा चौबीस तीर्थरों का समूह होता है, क्योंकि जिनकी आत्मा रत्नत्रय से पवित्र है वे विमलतर कहलाते हैं और