Book Title: Tirthankar 1974 04 Author(s): Nemichand Jain Publisher: Hira Bhaiyya Prakashan Indore View full book textPage 2
________________ റി . र मासिक .. चार का वर्णमाला में सदाचार का प्रवर्तन वर्ष ३, अंक १२; अप्रैल १९७४ वीर निर्वाण संवत् २५००; वैशा. २०३१ संपादन : डॉ. नेमीचन्द जैन प्रबन्ध : प्रेमचन्द जैन सज्जा : संतोष जड़िया संयोजन : बाबूलाल पाटोदी वार्षिक : दस रुपये नियों में : अठारह रुपये एक अंक : एक रुपया प्रस्तुत अंक : पाँच रुपये व्हाउचर-प्रति 825 एक कला-समीकरण तीर्थंकर के सज्जाकार श्री संतोष जड़िया से जब यह कहा गया कि उन्हें मुनिश्री विद्यानन्दविशेषांक के लिए आवरण तैयार करना है तब उन्होंने एक ही अहम सवाल कियाः जैन मुनि, या मुनिश्री विद्यानन्द ?' मैं जड़िया के कला-मर्म को पहिचान गया । उनकी आँखों ने मुनिश्री विद्यानन्दजी में जैन मुनि के साधारणीकरण के ही दर्शन किये थे । वे मुनिश्री में तीर्थंकर की वीतरागता, जिसका न तो बैल चिह्न है और न ही बन्दर, अपितु जो सामान्य है, जिसमें भेद-विज्ञान तो है किन्तु भेदक कुछ भी नहीं है, ही देख सके । उन्होंने एक समीकरण प्रस्तुत किया : मुनिश्री विद्यानन्द मोक्षमार्ग अर्थात् रत्नत्रय+शिलाखण्ड +मुनित्व के सामान्य प्रतीक पिच्छी और कमण्डल ; और इन सबको परम्परित रंगों के संयोजन में बांध दिया। इस तरह संपूर्ण आकृति आकार होने के साथ ही निराकार भी है; वह सामान्य मुनित्व की परिदर्शिका होने के साथ ही मुनिश्री विद्यानन्दजी के व्यक्तित्व की, उनकी आधी सदी की विचार एवं साधना-यात्रा की प्रतिनिधि भी है । हिमालय से लेकर मैदानों तक हुए उनके मंगल विहारों की प्रतिच्छाया तो वहाँ है ही, साथ ही पुद्गल से आत्मतत्त्व के विखण्डन की साधना भी इन रंगों और आकारों में प्रकट हुई है। सम्यक्त्व का त्रिक भी अपने समग्र वैभव के साथ शीर्ष पर स्थापित है । जैन सिद्धान्तों का इतना सूक्ष्म अंकन, जो मोक्षमार्ग के संपूर्ण माध्यमों को व्यक्त करता हो, इस तरह कहीं और देखने को नहीं मिलता। रंग और रेखाओं के कलश में जैन तत्त्वदर्शन को जिस कौशल के साथ यहाँ संजोया गया है, वह स्मरणीय है। --संपादक इस अंक का मुद्रण नई दुनिया प्रेस, इन्दौर प्रकाशक हीरा-भैया-प्रकाशन, १४, भोपाल कम्पाउण्ड, सरवटे बस-स्टेशन के सामने, इन्दौर ४५२००१, म. प्र. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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