Book Title: Terapanth Maryada Aur Vyavastha Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni Publisher: Jain Vishva Bharati View full book textPage 7
________________ प्रकाशकीय यह ग्रन्थ श्रीमद् जयाचार्य विरचित निम्न १० कृतियों का संग्रह है : . १-लिखतां री जोड़ २-गणपति सिखावण ३-शिक्षा री चोपी ४-उपदेश री चोपी ५-टहुका ६-मर्यादा मोच्छव री ढाळां ७-गण विशुद्धिकरण हाजरी ८-परंपरा री जोड़ ९-लघुरास १०-टाळोकरों की ढाळ इन कृतियों का विस्तृत परिचय सम्पादकीय में दिया जा रहा है, अतः उनके विषय में यहां कुछ लिखने की आवश्यकता नहीं रह जाती। श्रीमद्जयाचार्य का जन्म नाम जीतमलजी था। आपने अपनी कृतियों में अपना उपनाम 'जय' रखा इसलिए आप जयाचार्य के नाम से प्रख्यात हुए। आप जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के चतुर्थ आचार्य थे। आप की जन्म भूमि मारवाड़ का रोयट ग्राम था। आपका जन्म सं० १९६० की आश्विन शुक्ला १४ की रात्रि में कर्क लग्न में हुआ था। आप ओसवाल थे। गोत्र से गोलछा थे। आपके पिताश्री का नाम आईदानजी गोलछा और मातुश्री का नाम कल्लूजी था। आप तीन भाई थे। बड़े भाइयों के नाम क्रमशः सरूपचन्दजी और भीमराजजी थे। आपके जेष्ठ भ्राता सरूपचन्दजी ने सं० १८६९ की पौष शुक्ला ९ के दिन साधुजीवन ग्रहण किया। आपने उसी वर्ष माघ कृष्णा ७ के दिन प्रवज्या ग्रहण की। दूसरे बड़े भाई भीमरामजी की दीक्षा आपके बाद फाल्गुन कृष्णा ११ के दिन सम्पन्न हुई और उसी दिन माता कल्लूजी ने भी दीक्षा ग्रहण की। इस तरह सं० १८६९ पोष शुक्ला ८ एवं फाल्गुन कृष्णा १२ की पौने दो माह की अवधि में माता सहित तीनों भाई द्वितीय आचार्य श्री भारमलजी के शासन-काल में दीक्षित हुए। साधु-जीवन ग्रहण करते समय जयाचार्य नौ वर्ष के थे। दीक्षा के बाद आप शिक्षा के लिए मुनि हेमराज जी को सौंपे गये। वे ही आपके विद्या गुरु रहे। आगे जाकर आप एक महान् अध्यात्मिक योगी, विश्रुत इतिहास-सर्जक, विचक्षण साहित्य-स्रष्टा एवं सहज प्रतिभा-सम्पन्न कवि सिद्ध हुए। सं० १९०८ माघ कृष्ण १४ के दिन तृतीय आचार्य ऋषिराय का छोटी रावलियाPage Navigation
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