Book Title: Teen Din Mein Author(s): Dharmchand Shastri Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala View full book textPage 3
________________ जब जागो तभी सबेरा। सुकुमाल-शरीर से अत्यन्त कोमल,पूरी आयु भोगों में व्यतीत हुई। जब आयु के तीन दिन शेष रहे तभी अवसर मिला-.... मुनि वचन सुनने व मुनि दर्शन करने का। और बस निकल पड़े आत्मकल्याण के पथ पर | ध्यानस्थ होगये। महान उपसर्ग हुआ। स्यालनी उनके शरीर का भक्षण करने लगी और वह आत्म चिन्तन मेंलीन समाधिपूर्वक प्राण त्याग किया और बन गये अहमिन्द्र स्वार्थ सिद्धि में । देविये कहां तो सुकुमाल भोगों में मस्त और कहां कठिन तपश्चरण सब कुछ सम्भव है, बस केवल दृष्टि बदलने की आवश्यकता है। बाह्य से अन्तर की ओर दृष्टि कीजिये और देखिये काम कैसे नहीं बनता। बीती ताहि बिसार दे, आगे की सुध ले। जोहमारी आपकी बीत गई, उसका विचार न कीजिये। बस आज ही लग जाइये आत्म-कल्याण में। अभी भी देर नहीं हुई है। सुकुमाल तो केवल तीन दिन में ही कहीं से कहीं पहुंच गये। जैन कथाओं में सुकुमाल मुनिका विशेष स्थान है। आइये इसे पढ़ें और कुछ प्रेरणा लें इससे।Page Navigation
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