Book Title: Teen Din Mein
Author(s): Dharmchand Shastri
Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala

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Page 23
________________ इस मेरे देवर वायूभूति ने क्रोध मे आकर मुझे लात मारी थी। बस मै तड़फ उठी थी निश्चयकर लिया था कि आज नसही, कभीनकभी इससे बदला अवश्य लूंगी और इसके इसीपरको तोड तोडकरखाऊगी। आज मौका है क्योंन अपना. बदला चुकालूँ जिस शरीर को यह स्थालनी खा रही है वह मै हे ही नहीं। मैं इस शरीर से बिल्कुल भिन्न है। मैं चेतन हूँ और यह शरीर अचेतन है। मै तो ज्ञान दर्शन स्वभावी,चैतन्यरूपी, एक आत्मतत्वहूँ। शरीरके नाश होने पर भी मेरा नाश नही। मैं तो अजर अमर: फिर क्यों मैं खेद कर, क्यो अपने स्वरूप से डिगू। शरीरको खाया जा रहा है मुझे तो नहीं शरीर नष्ट होगा में तो नही। बस अपने में ही रमाइसी मे मेरा हित है। और बढ़ गई ध्यानस्थ मुनि की ओर और खाने लगी उनका दायां पैर और उसकी बच्ची लग गई उनके बायें पैर को खाने

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