Book Title: Tattvanushasanadi Sangraha
Author(s): Manoharlal Shastri
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti

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Page 156
________________ तत्त्वसारः। १४७ अत्थित्ति पुणो भणिया एण ववहारिएण ए सव्वे । णोकम्मकम्मणादी पज्जाया विविहभेयगया ॥ २२ ॥ संबंधो एदेसिं णायव्वो खीरणीरणाएण। एकत्तो मिलियाणं णियणियसब्भावजुत्ताणं ॥ २३ ॥ जह कुणइ कोवि भेयं पाणियदुद्धाण तक्कजोएण । णाणी व तहा भेयं करेइ वरझाणजोएण ॥ २४ ॥ झाणेण कुणउ भेयं पुग्गलजीवाण तह य कम्माणं । घेत्तव्यो णियअप्पा सिद्धसरूवो परो बंभो ॥ २५ ॥ मलरहिओ णाणमओ णिवसइ सिद्धीए जारिसो सिद्धो। तारिसओ देहत्थो परमो बंभो मुणेयवो ॥ २६ ॥ णोकम्मकम्मरहिओ केवलणाणाइगुणसमिद्धो जो। सोहं सिद्धो सुद्धो णिच्चो एको णिरालंयो ॥ २७ ॥ सिद्धोहं सुद्धोहं अणंतणाणाइगुणसमिद्धोहं । देहपमाणो णिच्चो असंखदेसो अमुत्तो य ॥ २८ ॥ थक्के मणसंकप्पे रुद्धे अक्खाण विसयवावारे । पयडइ बंभसरूवं अप्पाझाणेण जोईणं ॥ २९ ॥ जह जह मणसंचारा इंदियविसयावि उवसमं जंति । तह तह पडयइ अप्पा अप्पाणं जाण हे सूरो ॥ ३०॥ मणवयणकायजोया जइणो जइ जति णिधियारत्तं । तो पयडइ अप्पाणं अप्पा परमप्पयसरूवं ॥ ३१ ॥ मणवयणकायरोहे रुज्झइ कम्माण आसवो पूर्ण । चिरबद्धं गलइ सई फलरहियं जाइ जोईणं ॥ ३२ ॥ लहइ ण भन्यो मोक्खं जावइ परदव्ववावडो चित्तो। उग्गतवंपि कुणंतो सुद्धे भावे लहुं लहइ ॥ ३३ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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