Book Title: Tattvanushasanadi Sangraha
Author(s): Manoharlal Shastri
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti

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Page 159
________________ १५० श्रीदेवसेनकृतः उभयविणडे भावे णियउवलद्धे सुसुद्धससरूवे । विलसइ परमाणंदो जोईणं जोयसत्तीए ॥ ५८ ॥ किं कीरह जोएण जस्स य ण हु अस्थि एरिसा सत्ती। फुरइ ण परमाणंदो सच्चेयणसंभवो सुहदो ॥ ५९॥ जा किंचिवि चलइ मणो झाणे जोइस्त गहिय जोयस्स। ताव ण परमाणंदो उप्पज्जइ परमसोक्खयरो ॥६०॥ सयलवियप्पे थक्के उप्पज्जह कोवि सासओ भावो । जो अप्पणो सहावो मोक्खस्स य कारणं सो हु ॥६१ ॥ अप्पसहावे थक्को जोई ण मुणेइ आगए विसए। जाणिय णियअप्पाणं पिच्छयतं चेव सुविसुद्धं ॥ ६२ ॥ ण रमइ विसएसु मणो जोइस्स दु लद्धसुद्धतच्चस्स । एकीहवह णिरासो मरइ पुणो आणसत्थेण ॥ ६३ ॥ ण मरइ तावेत्थ मणो जाम ण मोहो खयंगओ सव्वो। खीयंति खीणमोहे सेसाणि य घाइकम्माणि ॥ ६४॥ णिहए राए सेण्णं णासई सयमेव गलियमाहप्पं । तह णिहयमोहराए गलंति णिस्सेसाईणि ॥६५॥ घाइचउक्के णहे उप्पज्जइ विमलकेवलं गाणं । लोयालोयपयासं कालत्तयजाणगं परमं ॥६६॥ तिहुअणपुज्जो होउं खविओ सेसाणि कम्मजालाणि । जाया अभूदपुव्वो लोयग्गणिवासिओ सिद्धो ॥ ६७ ॥ गमणागमणविहीणो फंदणचलणेहि विरहिओ सिद्धो। अव्वावाहसुहत्थो परमहगुणेहिं संजुत्तो॥ ६८ ॥ लोयालोयं सव्वं जाणइ पिच्छेइ करणकमरहियं । मुत्तामुत्ते ध्वे अणंतपज्जायगुणकलिए ॥ ६९ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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