Book Title: Tattvanushasanadi Sangraha
Author(s): Manoharlal Shastri
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti

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Page 166
________________ श्रुतस्कंधः । वस्तु एकप्रतिपाहुड २० पाहुडसंख्या ३९०० पाहुड १ प्रतिपाहुड जातप्रतिपाहुड ९३६०० प्रतिपाहुड १ प्रतिअनुयोगाः २९ जात अनुयोगसंखा २२९६९०० अनुयोगपाहुडसंखा पणरससोलसपणपण्णतिकिदिसुण्णसत्ततयसत्ता । सुण्णं चदुचदुसगछहचदुचदुअडइगिसु अक्खरया ॥ ५५ ॥ ॥। १८४४६७४४०७३७०९५५१६१५ ॥ सव्वसुयं अक्खरयं मझिमपदभाइयं हरेहु नियमेण । पयसंखा सा जाणसु सेससुदं अंगवाहिरयं ॥ ५६ ॥ १८४४६७४४०७३६२९४४३४४० ॥ १५७ द्वादशानामंगानां सकलश्रुताक्षर संख्याप्रमाणं । अडअडसीढ़ीसगणहतहतयअडचदुतय तहय सोलसया । मझिमपदे अंका एसो भासति तित्थयरा ॥ ५७ ॥ १६३४८३०७८८८ मध्यमपदाक्षरसंख्या । एकावणं कोडी लक्खा अट्ठेव सहसचुलसीदी। सयछकं णायव्वं साढाइकवीसपयगंथा ५१०८८४६२१ ॥ ५८ मध्यमग्रंथप्रमाणं | पण्णत्तरिसय सहियं अडदहसीदी मुणेहु अंककमो । बाहिरसुदेसु अक्खर तं चउदह पयण्णयं नमामि ॥ ५९ ॥ ८०१०८१७९ अंगबाह्यश्रुतअक्षरसंख्या || अडतीसातिण्णिसयासहस्सपण्णास लक्खवे मुणहु । पणदह अक्खर सहिया वाहिरसुद्गंथया भणिया || . ग्रंथ २५०३३८ अक्षर १५ अंगवाह्यश्रुताक्षर ग्रंथप्रमाणं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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