Book Title: Tattvanushasanadi Sangraha
Author(s): Manoharlal Shastri
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 167
________________ १५८ उक्तं च ब्रह्महेमचंद्रविरचितः सामाइयथुइवंदणपडिक्कमणं वेणइयकिदिकम्मं । कालियउत्तरज्झयणं कप्पं तह कप्पकप्पं च ॥ ६१ ॥ महकप्पं पुंडरियं महपुंडरियं असीदिया चेव । वंदे चउदसेदे अण्णोव य अंगबज्झसुदे ॥ ६२ ॥ देसावहिछन्भेयं परमावहिसव्वअवहिचारिमतणुं । मणपज्जव संजमिणं घादिखए केवलं होदि ॥ ६३ ॥ दुसमसुसमावसाणो दुसमपएसेवि कालपरिमाणे । सुदकेवलिपरिवाडी आयण्णहु पयदचित्तेण ॥ ६४ ॥ आहुडमासहीणे वासचउक्कंहि तुरियकालंते । कत्तियकिसण चउद्दसि वीरजिणो सिद्धिसंपत्तो ॥ ६५ ॥ केवलणाणुप्पण्णो तहि समए गोयमस्स गणवइणो । णिव्वाणं समपणं णाणो य सुधम्म जाणेहु ॥ ६६ ॥ अंतेसु जंबुसामी पंचमणाणी य तहय णिव्वाणो । वासद्वि वरिसकालो अणुवद्दिय तिणि केवलिणो ॥ ६७ ॥ वर्ष६ अणयार अंत केवलिसिरिहरजयणो सुसिद्धिअणुसरिआ चारणमुणी य चरिमं वंदेह सुपासयं णाम ॥ ६८ ॥ वइरिज सणामधेओ पण्णयसवणाण चरिम जाणेहु । सिरिणामावहिणाणी अंतिल्लो तित्थ पणमिओ ॥ ६९ ॥ चरिमो मउडधरीसो णरवइणा चंदगुत्तणामाए । पंचमहत्वयगहिया अवरिंरिक्खाय ओछिण्णा ॥ ७० ॥ नंदी य दिमित्त अवरज्जिउ पुणु गुवद्वणो णामो । पंचमउ भद्दवाहों पुव्वंगधरा णमंसामि ॥ ७१ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186