Book Title: Tattvanushasanadi Sangraha
Author(s): Manoharlal Shastri
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
View full book text
________________
श्रुतस्कंधः।
१५९
वाससयं तह कालो परिगलिओ वडमाणतित्थेसु । एसो भवियं जाणहु भरहे सुदकेवली णत्थि ॥७२॥
वर्ष१०० वर्द्धमाने निर्वाणे गते स- ।।
। ति पश्चात् श्रुमकेवली न संजातः । विसाहणामो पढमो पोटिल्लो जयउखत्तिओ णागो। सिद्धत्थो धिदसेणो विजओ णवमो य बुद्धिल्लो॥ ७३ ॥ गंगो सुधम्मुणामो एयारसमुणि जयम्मि विक्खाया। तेसीदिसयं वासं कालो दसपुव्वधर णेया॥ ७४॥ वर्ष १८३। णरवत्तो जयपालो पुंडरिउ धुदसेणु कुंसणामा य।। एयारसअंगधरा वासं वीसहियविण्णिसया ॥७५॥ वर्ष २२०॥ मुणिपुंगवो सुभद्दो पुणु जसभद्दो तहेव जसवाहो। लोहो णाम अलोहो पढमंगधरावि चत्तारि ॥७६ ॥ विणययरो सिरिदत्तो सिवदत्तो अवुहदत्त मुणिवसहः । अंगं पुव्वं मज्झे देसधरा चारि जाणेह ॥ ७ ॥ अटुदसं अहियाणं वाससयं तय कालवोलीणो। अवसप्पइ सुदपवरा अंगधरा भरहे वुच्छिण्णा ॥७८ ॥ वर्ष ११८। गुत्तिमयं लेसाणं वासाणं परगलियमित्तमादी य। देसूणय देसधरा मुणिअरुहाभणियणामा य ॥७९॥ वर्षाः६८३ आयरिउ भद्दवाहो अटुंगमहणिमित्तजाणयरो। णिण्णासइ कालवसेसचरिमो हु णिमित्तिओ होदि ।। ८० ॥ उज्जिते गिरिसिहरे धरसेणो धरइ वयसमिदिगुत्ती। चंदगुहाइणिवासी भवियहु तसु णमहु पयजुयलं ॥ ८१ ॥ अग्गायणीयणामं पंचमवत्थुगदकम्मपाहुडया । पयडिटिदिअणुभागो जाणति पदेसवंधोवि ॥ ८२ ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186