Book Title: Tattvanushasanadi Sangraha
Author(s): Manoharlal Shastri
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
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१४८
श्रीदेवसेनकृतः
परदव्वं देहाई कुणइ ममत्तिं च जाम तस्सुवरि । परसमयरदो तावं वज्झदि कम्महिं विविहेहिं ॥ ३४॥ रूसइ तूसइ णिचं इंदियविसयहिं संगओ मूढो। सकसाओ अण्णाणी णाणी एदो दु विवरीदो ॥ ३५ ॥ चेयणरहिओ दीसइ ण य दीसह इत्थ चेयणासहिओ। तम्हा मज्झत्थोहं रूसेमि य कस्स तूसेमि ॥ ३६ ॥ अप्पसमाणा दिठा जीवा सम्ववि तिहुअणस्थावि । जो मज्झत्थो जोई ण य तूसइ णेय रूसेइ ॥ ३७॥ जंमणमरणविमुक्का अप्पपएसेहिं सव्वसामण्णा । सगुणेहि सव्वसरिसा णाणमया णिच्छयणएण ॥ ३८ ।। इय एयं जो बुझइ वत्थुसहावं णपहिं दोहिंपि । तस्स मणो डहुलिज्जइ ण रायदोसहि मोहेहिं ॥ ३९ ॥ रायद्दोसादीहि य डहुलिज्जइ णेव जस्स मणसलिलं । सो णियतचं पिच्छइ ण हु पिच्छइ तस्स विवरीओ॥४०॥ सरसलिले थिरभूए दीसइ णिरु णिवडियांप जह रयणं । मणसलिले थिरभूए दीसइ अप्पा तहा विमले ॥ ४१ ॥ दिहे विमलसहावे णियतच्चे इंदियंत्थपरिचत्ते । जायइ जोइस्त फुडं अमाणसत्तं खणद्वेण ॥ ४२ ॥ णाणमयं णियतचं मिल्लिय सव्वेवि परगया भावा । तं छंडिय भावेज्जो सुद्धसहावं णियप्पाणं ॥४३॥ जो अप्पाण झायदि संवेयणचेयणाइउवजुत्तं । सो हवइ वीयराओ णिम्मलरयणप्पओ साहू ॥४४॥ दसणणाणचरित्तं जोई तस्सेह णिच्छयं भणियं । जो वेयइ अप्पाणं सचेयणं सुद्धभावहं ॥ ४५ ॥
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