Book Title: Tattvanushasanadi Sangraha
Author(s): Manoharlal Shastri
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
View full book text
________________
१४६
श्रीदेवसेनकृतः
बहिरभंतरगंथा मुक्का जेणेह तिविहजोएण। सो णिग्गंथो भणिओ जिणलिंगसमासिओ सवणो ॥१०॥ लाहालाहे सरिसो सुहदुक्खे तह य जीविए मरणे । बंधो अरयसमाणो झाणसमत्थो हु लो जोई ॥ ११ ॥ कालाइलद्धिणियडा जह जहं संभवइ भव्वपुरिसस्स । तह तह जायइ पूणं सुसव्वसामग्गिमोहटुं ॥ १२ ॥ चलणरहिओ मणुस्सो जह वंछइ मेरुसिहरमारुहिउं । तह झाणेण विहीणो इच्छइ कम्मक्खयं साहू ॥१३॥ संकाकंखागहिया विसयपसत्था सुमग्गपन्भहा। एवं भणंति केई ण हु कालो होइ कालस्स ॥ १४॥ अज्जवि तिरयणवंता अप्पा झाऊण जति सुरलोयं । तत्थ चुया मणुयत्ते उप्पज्जिय लहहि णिव्वाणं ॥१५॥ तम्हा अब्भसउ सया मुत्तूणं रायदोसवामोहो। झायउ णियअप्पाणं जइ इच्छइ सासयं सुक्खं ॥ १६ ॥ दसणणाणपहाणो असंखदेसो हु मुत्तिपरिहीणो। सगहियदेहपमाणो णायव्वो एरिसो अप्पा ॥१७॥ . रायादिया विभावा बहिरंतरउहवियप्प मुत्तूणं । एयग्गमणो झायहि णिरंजणं णिययअप्पाणं ॥ १८ ॥ जस्स ण कोहो माणो माया लोहो य सल्ल लेसाओ। जाइजरामरणं विय णिरंजणो सो अहं भणिओ ॥ १९॥ णस्थि कला संठाणं मग्गणगुणठाण जीवठाणाई। णई लद्धिबंधठाणा णोदयठाणाइया केई ॥ २० ॥ फासरसरूवगंधा सहादीया य जस्स णत्थि पुणो। सुद्धो चेयणभावो णिरंजणो सो अहं भणिओ ॥ २१ ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
![](https://s3.us-east-2.wasabisys.com/jainqq-hq/fac518768c6a46d67e66630b44135ee6f902b283f186b5dc156fa2edb89c25ef.jpg)
Page Navigation
1 ... 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186