Book Title: Tattvanushasanadi Sangraha
Author(s): Manoharlal Shastri
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
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तत्त्वसारः ।
१५१
धम्माभावे परदो गमणं णस्थित्ति तस्स सिद्धस्स । अत्थइ अणंतकालं लोयग्गणिवासिउं होउं ॥ ७० ॥ संते वि धम्मव्वे अहो ण गच्छइ तह य तिरियं वा । उडूं गमणसहाओ मुक्को जीवो हवे जम्हा ॥७१ ॥ असरीरा जीवघणा चरमसरीरा हवंति किंचूणा। अम्मणमरणविमुक्का णमामि सव्वे पुणो सिद्धा ॥ ७२ ॥ जं तल्लीणा जीवा तरंति संसारसायरं विसमं । तं सव्वजीवसरणं णंदउ सगपरगयं तचं ॥७३॥ सोऊण तच्चसारं रइयं मुणिणाहदेवसेणेण । जो सद्दिही भावइ सो पावइ सासयं सोक्खं ॥७४ ॥
इति श्रीदेवसेनकृतः तत्त्वसारः समाप्तः ।
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