Book Title: Sutrakritang Sutra
Author(s): Sudarshanlal Acharya, Priyadarshan Muni, Chhaganlal Shastri
Publisher: Shwetambar Sthanakvasi Jain Swadhyayi Sangh

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Page 2
________________ H प्रधान सम्पादक शासनगौरव, युवामनीषी, आचार्य प्रवर श्री सुदर्शनलाल जी म. सा. SCO पौष बदी१० वि.सं.२०२९ का प्रभात रवि-रश्मियों के प्रथम अवतरण के समान श्रद्धेय उत्सवराजजी चौधरी एवं श्रीमती भँवरी बाई जी चौधरी के आत्मज श्री पारसमलजी के जन्म ने अध्यात्म के धरातल को धन्य कर दिया । 0 बाल्यकाल में बुद्धि से मेधावी, मन से वीतरागी, स्वभाव से मिलनसार, हृदय से निश्छल-निर्मल एवं व्यवहार से ऋजु-मृदु श्री पारसमलजी त्याग-तप-ज्ञान-साधना पथ के महापथिक बन वि. सं. २०४४ माघसुदी १० को बिजयनगर में आर्हती दीक्षा अंगीकार कर आचार्य प्रवर श्रद्धेय सोहनलालजी म. सा. के प्रिय सुशिष्य 'मुनि सुदर्शन' बन गए । ध्यान-साधना के पावन प्रतीक, पवित्रचरित्र के प्रेरणा स्रोत, समरस के प्रशान्त सागर सर्वोदय-तीर्थ के संदेशवाहक, शासनगौरव श्री सुदर्शन मुनिजी ने अहिंसादि पंचशील के अभिभावक व परमार्थ-धर्म के सफल उपदेशक बन विपुल ख्याति अर्जित की । हिन्दी, संस्कृत, प्राकृत आदि भाषाओं एवं व्याकरपा, न्याय, दर्शन, आगम, साहित्यशास्त्र आदि का गहन अध्ययन कर अमूर्त विषयों के कुशल विवेचक का विरुद प्राप्त किया। सेवा-संगठन-साधना के सूत्रधार बन जन-जन की आस्था के केन्द्र बने । युवाओं को सामायिकस्वाध्याय से संपृक्तकर युवावर्ग की श्रद्धा समर्जित की। आगमिक टीकाओं के गहन अध्ययन से अपने ज्ञान-फलक को विस्तार दिया । विसं.२०५५ की मात्र बदी ६ से आचार्यपद का गुरुतर दायित्व वहन करते हुए 'शासनगौरव', 'युवामनीषी' के विरुद को सार्थक किया । युवाओं, प्रौढ़ों व वयोवृद्धों के मध्य सेतु बन सद्व्यवहार, सद्विचार-सदाचार के अक्षय कोष के रूप में सम्माननीय - स्मरणीय बन गए।

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